प्रश्न: 18वीं शताब्दी का भारत सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से उस गति से प्रगति करने में विफल रहा, जो देश को पतन से बचा सकता था। टिप्पणी कीजिए।
Que. 18th century India failed to progress socially, culturally and economically at a pace that could have saved the country from collapse. Comment.
दृष्टिकोण: (i) 18वीं शताब्दी के भारत का संक्षिप्त परिचय दीजिए। (ii) रेखांकित कीजिए कि 18वीं शताब्दी के दौरान भारत सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से प्रगति करने में किस प्रकार विफल रहा, जिसके कारण अंततः ब्रिटिश साम्राज्यवाद को बढ़ावा मिला। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
मुगलों के पतन के पश्चात् 18वीं शताब्दी का दौर भारत में राजनीतिक रूप से काफी अशांत था। यहां अखिल भारतीय स्तर पर कोई केंद्रीकृत शासन स्थापित नहीं था। कई स्वतंत्र क्षेत्रीय साम्राज्यों का उदय हुआ और उनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता ने विनाशकारी विदेशी आक्रमणों को बढ़ावा दिया।
18वीं शताब्दी के दौरान भारत पर कई विदेशी आक्रमण हुए और इनसे भारत को अत्यधिक नुकसान हुआ। इनके कारण भारत सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से प्रगति करने में विफल रहा, जैसा कि नीचे उल्लिखित है:
18वीं शताब्दी के दौरान सामाजिक रूप से प्रगति करने में विफलता के प्रमुख कारक:
1. सामंती सामाजिक संबंध: पश्चिमी देशों में पुनर्जागरण और ज्ञान के उदय के साथ सामंतवाद धीरे-धीरे कमजोर हो रहा था। इसके विपरीत, भारतीय समाज अभी भी मुगल शासन के अधीन सामंती और शोषक सामाजिक संबंधों में उलझा हुआ था।
2. सामाजिक असमानता: एक तरफ जहां धनी और शक्तिशाली कुलीन लोग विलासितापूर्ण और आरामदायक जीवन व्यतीत करते थे, वहीं दूसरी ओर पिछड़े, उत्पीड़ित और गरीब किसान कठिनाई से जीवन व्यतीत कर रह रहे थे।
3. कठोर जाति व्यवस्था: जाति ने सामाजिक संरचना के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में कार्य किया, जिससे 18वीं शताब्दी तक सामाजिक पदानुक्रम के भीतर कठोर विभाजन हो गया। इस जड़ प्रणाली ने सामाजिक विभाजन को बढ़ाया तथा एकता में बाधा उत्पन्न की। जाति व्यवस्था के स्थायित्व ने असमानताओं को मजबूत किया, जिससे सामाजिक एकता कमजोर हुई। परिणामस्वरूप, भारतीय समाज आज भी विखंडन से जूझ रहा है, जिससे इसकी विविध आबादी के बीच सामूहिक एकजुटता और सामंजस्य विफल रहा।
4. महिलाओं की अधीनताः महिलाओं में न केवल असमानता विद्यमान थी, बल्कि ये पूर्णत: अधीन भी थीं। जबकि उस समय, पश्चिमी देशों में महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा था। उदाहरण के लिए, सती प्रथा आदि का प्रचलन।
18वीं शताब्दी के दौरान सांस्कृतिक रूप से प्रगति करने में विफलता के प्रमुख कारक:
1. सांस्कृतिक गतिरोध: 18वीं शताब्दी के भारतीय, पश्चिम के वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास, पुनर्जागरण के उदय तथा राजनीतिक एवं आर्थिक उपलब्धियों से अनभिज्ञ थे। उदाहरण के लिए, शासक अंधविश्वासी थे तथा वैज्ञानिक नवाचारों और खोजों के प्रति आशंकित रहते थे। इसके कारण रक्षा प्रणाली का निम्र आधुनिकीकरण हुआ और अंततः विदेशी आक्रमण सफल हुए।
2. वैज्ञानिक शिक्षा का अभाव: समय की मांग के अनुसार, परंपरागत शिक्षा को अद्यतन नहीं किया गया था। उसी समय, पश्चिम नित नई ऊंचाइयों को छू रहा था और प्रगति कर रहा था। उदाहरण के लिए, भारत की शिक्षा प्रणाली को भौतिक और प्राकृतिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी और भूगोल के अध्ययन से वंचित रखा गया था वहीं पश्चिम में इन विषयों का अध्ययन किया जा रहा था।
18वीं शताब्दी के दौरान आर्थिक रूप से प्रगति करने में विफलता के प्रमुख कारक:
1. कृषि का पिछड़ापन: भारतीय कृषि तकनीकी रूप से पिछड़ी और स्थिर थी। इसके कारण उत्पादन सीमित होता था, जो घरेलू आबादी की खाद्य आपूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं था।
2. भारतीय नगरों का पतन: भारत में कई समृद्ध नगर उद्योग के केंद्र के रूप में विकसित हो रहे थे। विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा इन्हें लूटा गया और बर्बाद कर दिया गया। उदाहरण के लिए, दिल्ली को नादिर शाह द्वारा; लाहौर, दिल्ली और मथुरा को अहमद शाह अब्दाली द्वारा; और आगरा को जाटों द्वारा लूटा गया था।
3. आंतरिक और विदेशी व्यापार में गिरावट: 18वीं शताब्दी के दौरान भारत के राजनीतिक और आर्थिक विभाजन के कारण स्थानीय आपूर्ति को बढ़ावा मिला। इसके अतिरिक्त, शासकों द्वारा उत्पादन विधियों के आधुनिकीकरण पर कम बल दिया गया। उसी समय पश्चिम ने अपने उत्पादन के साधनों का आधुनिकीकरण किया था।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, 18वीं शताब्दी के दौरान भारत अपनी परंपराओं में उलझा हुआ था। यह उस वैज्ञानिक ज्ञान को आत्मसात करने में विफल रहा जिसे पश्चिमी देशों द्वारा दिया जा सकता था। सत्ता और धन के लिए संघर्ष, आर्थिक गिरावट, सामाजिक पिछड़ेपन तथा सांस्कृतिक अधीनता का तात्कालिक भारतीयों पर गहरा एवं हानिकारक दुष्प्रभाव पड़ा।
इन सभी कारकों ने प्लासी (1757), की लड़ाई तथा बक्सर (1764) की लड़ाई के उपरांत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के राजनीतिक प्रभुत्व को उजागर किया, जिससे अखिल भारतीय औपनिवेशिक शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ।