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प्रश्न: अभिलेखों को प्राचीन इतिहास के सबसे विश्वसनीय स्रोतों में से एक माना जाता है लेकिन उनकी पहचान और संरक्षण करने में अभी भी चुनौतियां विद्यमान हैं। चर्चा कीजिए।

Que. Inscriptions are considered as one of the most reliable sources of ancient history but challenges still persist in their understanding and preservation. Discuss. 

दृष्टिकोण:

(i) अभिलेखों के बारे में वर्णन करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।

(ii) प्राचीन इतिहास के सबसे विश्वसनीय स्रोत के रूप में अभिलेखों के महत्व को स्पष्ट कीजिए। साथ ही, उनकी पहचान और संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।

(iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

परिचय:

अभिलेख का तात्पर्य किसी पत्थर, काष्ठ, धातु, हाथी दांत, ताम्र प्रतिमा, ईंट, मृद्धाण्ड, शंख इत्यादि जैसी सतह या पटल पर उत्कीर्ण लेख से है। शिलालेखों के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र कहा जाता है। पुरालेखशास्त्र में अभिलेखों पर लिखे हुए व्याख्यान को समझना और उसमें मौजूद जानकारी का विश्लेषण करना शामिल है। 

अभिलेखों को प्राचीन इतिहास के सबसे विश्वसनीय स्रोतों में से एक माना जाता है क्योंकि वे निम्नलिखित जानकारी प्रदान करते हैं:

(i) भौगोलिक विस्तार: किसी शासक के अभिलेखों का भौगोलिक विस्तार प्रायः उसके नियंत्रण क्षेत्र और प्रशासनिक व्यवस्था के बारे में संकेत देता है। उदाहरण के लिए: इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख समुद्रगुप्त के साम्राज्य के वास्तविक विस्तार को जानने में मदद करता है। साथ ही, यह उसकी राजनीतिक और सैन्य उपलब्धियों के बारे में भी बताता है।

(ii) सामाजिक जीवन: अभिलेख तत्कालीन सामाजिक रीति-रिवाजों के अतिरिक्त जाति और वर्ग संरचनाओं पर भी प्रकाश डालते हैं। इस प्रकार ये उस युग के सामाजिक जीवन की झलक प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए: ब्रह्मदेशम शिलालेख में राजेंद्र चोल की रानी विरमादेवी के सती होने का उल्लेख मिलता है।

(iii) आर्थिक इतिहास: अभिलेख हमें तत्कालीन आर्थिक जीवन के बारे में उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए: रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में कहा गया है कि सुदर्शन झील का निर्माण चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा किया गया था, लेकिन इसकी मरम्मत रुद्रदामन और उसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य द्वितीय द्वारा कराई गई थी।

(iv) धार्मिक क्षेत्र: अभिलेख धार्मिक प्रथाओं, संस्थानों और विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के इतिहास पर विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए: 464-465 ईसा पूर्व के स्कंदगुप्त के ताम्रपत्र अभिलेख में सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है।

(v) कला शैलियां: अभिलेख हमें नृत्य, संगीत और अन्य कलाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए: तमिलनाडु का कुडुमियानमलाई अभिलेख संगीत पर सबसे आरंभिक अभिलेखों में से एक है।

हालांकि, उनकी पहचान और संरक्षण में कुछ चुनौतियां विद्यमान हैं:

(i) शहरी नियोजन में संरक्षण को कम प्राथमिकताः शहरीकरण के कारण अनेक स्थल, वहां मौजूद अभिलेखों सहित नष्ट हो गए हैं। उदाहरण के लिए: कर्नाटक के दावणगेरे जिले के अनाजी गांव के पास एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण अभिलेख, जिसमें कदंबों और पल्लवों के बीच युद्ध का उल्लेख था, नष्ट हो गया।

(ii) सार्वजनिक उदासीनताः नवीकरण कार्यों में संलग्न लोगों की उदासीनता और अज्ञानता के कारण, अभिलेख कई बार विकृत और क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए: उत्कीर्ण किए हुए पत्थर के शिलापट्ट, जो उस मुख्य संरचनाओं का अभिन्न हिस्सा नहीं होते हैं, गांवों एवं कस्बों में इधर-उधर पड़े रहते हैं। पहचान के अभाव में, इनका कपड़े की धुलाई के शिलापट्ट अथवा सीढ़ी के पत्थरों के रूप में दुरुपयोग होने का खतरा रहता है। साथ ही, कई बार उनका उपयोग दीवारों के निर्माण के लिए ईंटों के रूप में भी कर लिया जाता है।

(iii) इतिहास के स्रोत के रूप में अभिलेखों की सीमाएं: अभिलेख अतिशयोक्ति और पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, ऐसी भी संभावना है कि अभिलेख उस अवधि के बाद लिखा गया हो, जिसका यह संदर्भ प्रस्तुत कर रहा है। इससे तिथि का अनुमान गलत हो सकता है।

(iv) पुरालेख शाखा में कम कर्मचारीः विशेषज्ञों की कमी अभिलेखों को समझने तथा गूढ़ लिपि के अर्थ निरूपण पर शोध करने में समस्या उत्पन्न करती है।

निष्कर्ष:

पूर्व-औपनिवेशिक दक्षिण एशियाई सिद्धांत के अध्ययन के लिए अभिलेखों का महत्व अच्छी तरह से प्रमाणित है। भारत में अब तक लगभग 90,000 से अधिक अभिलेख प्राप्त किए गए हैं। अतः अभिलेखों के संरक्षण के लिए नवाचारी उपायों; उदाहरण के लिए: अभिलेखों का डिजिटलीकरण, निजी क्षेत्रक को शामिल करना, जन जागरूकता को बढ़ावा देना इत्यादि विकल्पों को अपनाया जा सकता है। 

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