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प्रश्न: 18वीं शताब्दी के मध्य में मुगलों के पतन के बाद विभिन्न उत्तराधिकारी राज्यों, विद्रोही राज्यों और स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ, लेकिन उनमें से कोई भी अंग्रेजों को बाहर रखने में सक्षम नहीं था। विवेचना कीजिए। 

Que. The decline of the Mughals in the middle of the 18th century saw the emergence of various successor states, rebel states and independent states, but none of them were able to keep the British out. Discuss. 

दृष्टिकोण

(i) परिचय: मुगलों के पतन पर संक्षिप्त भूमिका लिखिए।

(ii) मुख्य भाग: विभिन्न उत्तराधिकारी राज्यों, विद्रोही राज्यों और स्वतंत्र राज्यों के उदय पर चर्चा कीजिए। साथ ही, अंग्रेजों को बाहर रखने में इन राज्यों की विफलता का कारण बताइए।

(iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

परिचय

18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में मुगल साम्राज्य का पतन प्रारंभ हो गया था। इसके पतन के कई कारण थे. जैसे कि- मुगल राज्यव्यवस्था की आंतरिक दुर्बलता एवं सत्ता के लिए संघर्ष; नादिर शाह तथा अहमद शाह अब्दाली जैसे शासकों से बाह्य चुनौतियां; शासकों की विलासितापूर्ण जीवन शैली से उत्पन्न आर्थिक संकट और जागीरदारी व्यवस्था से उत्पन्न संकट।

मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही क्षेत्रीय राज्यों का भी उदय हुआ। मुख्यतः तीन प्रकार के राज्यों का उदय हुआ

(i) उत्तराधिकारी राज्यः ये ऐसे राज्य थे जो पहले मुगल साम्राज्य में उसके प्रांत के रूप में शामिल थे, परंतु बाद में मुगल साम्राज्य से अलग हो गए। उदाहरण के लिए: हैदराबाद, बंगाल और अवध। ये राज्य मुगलों से कई चरणों में अलग हुए पहले कुछ व्यक्तियों ने विद्रोह किया; उसके बाद सामाजिक समूहों, समुदायों का विद्रोह हुआ, अंततः यह क्षेत्रीय विद्रोहों में परिवर्तित हो गया। शाही मांगों के विरुद्ध प्रांतों में जमींदारों के विद्रोहों ने विघटन की इस प्रक्रिया को आरंभ कर दिया। सूबेदारों को केंद्र से कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई, जिसके फलस्वरूप उन्होंने स्थानीय संभ्रांत लोगों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया।

(ii) विद्रोही राज्य या नए राज्यः क्षेत्रीय राज्यों का दूसरा समूह “नए राज्यों” या “विद्रोही राज्यों” का था। इनका गठन मराठों, सिक्खों, जाटों एवं अफगानों द्वारा मुगलों के विरुद्ध विद्रोह करके किया गया था। पहले तीन राज्यों का गठन किसान विप्लव के लोकप्रिय आंदोलनों के फलस्वरूप हुआ था। इन आंदोलनों का नेतृत्व कुलीनों द्वारा नहीं किया गया था, बल्कि इनका नेतृत्व नए नेताओं ने किया जो समाज के निस्र तबकों से संबंधित थे।

(iii) स्वतंत्र राज्यः तीसरी श्रेणी में ऐसे राज्य शामिल थे जिनका गठन न तो मुगलों से अलग हो कर हुआ था और न ही मुगलों के विरुद्ध विद्रोह के फलस्वरूप हुआ था। इस श्रेणी में मैसूर, राजपूत राज्य और त्रावणकोर शामिल थे।

ये राज्य मुगल सत्ता को नष्ट करने के लिए पर्याप्त रूप से शक्तिशाली साबित हुए, परन्तु इनमें से कोई भी राज्य अंग्रेजों के हमले का विरोध करने में सक्षम नहीं था। ऐसा निम्नलिखित कारणों से था

(i) केंद्रीय सत्ता का अभावः यद्यपि क्षेत्रीय शक्तियां स्वतंत्र राज्य स्थापित करने में सफल रहीं, लेकिन ये मुगल साम्राज्य के स्थान पर अखिल भारतीय स्तर पर एक स्थिर राज्य व्यवस्था स्थापित करने में सक्षम नहीं हो सकी। इसलिए वे अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट होने में विफल रहे।

(ii) आधुनिकीकरण का अभावः यद्यपि इनमें से कुछ ने, विशेषकर मैसूर ने आधुनिकीकरण के लिए प्रयास किए परंतु कुल मिलाकर ये सभी विज्ञान एवं तकनीकी में काफी पिछड़े हुए थे। भारत में अंग्रेजों की सफलता में आधुनिक हथियारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(iii) आर्थिक संकटः ये क्षेत्रीय राज्य भी आर्थिक गतिरोध की उस प्रक्रिया से ग्रसित रहे जिसने मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया था। उदाहरण के लिए: कृषि से होने वाली आमदनी में गिरावट आयी जबकि अधिशेष पैदावार में हिस्सा लेने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई, इसके कारण जागीरदारी संकट और गंभीर हो गया।

(iv) आंतरिक संघर्षः उत्तराधिकार के लिए हुए आंतरिक संघर्षों के कारण इनमें से कुछ क्षेत्रीय राज्यों में अव्यवस्था फैल गई, जिससे वे और भी कमजोर हो गए। उदाहरण के लिए: मुगलों के बाद मराठा अखिल भारतीय साम्राज्य स्थापित करने के मुख्य दावेदार थे, लेकिन वे आंतरिक संघर्ष के कारण असफल रहे। अंग्रेजों ने इन संघर्षों का फायदा उठाकर ऐसे क्षेत्रीय राज्यों को और कमजोर कर दिया।

निष्कर्ष

क्षेत्रीय राज्यों की आंतरिक कमजोरियों के साथ-साथ अंग्रेजों की आर्थिक एवं सैन्य शक्ति में वृद्धि के कारण भारत में 18वीं शताब्दी के मध्य से लेकर अगली दो शताब्दियों तक ब्रिटिश साम्राज्य का सुदृढीकरण और विस्तार जारी रहा।

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