प्रश्न: भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान रवींद्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद संबंधी दृष्टिकोण में अंतर्निहित प्रमुख सिद्धांतों को वर्णित कीजिए।
Que. Bring out the key principles underlying Rabindranath Tagore’s vision of nationalism during the Indian freedom struggle.
दृष्टिकोण: (i) रवींद्रनाथ टैगोर पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखते हुए उत्तर आरंभ कीजिए। (ii) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रवाद से संबंधित उनके दृष्टिकोण में अंतर्निहित प्रमुख सिद्धांतों पर चर्चा कीजिए। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
रवींद्रनाथ टैगोर एक विश्व प्रसिद्ध कवि, कलाकार, विचारक, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक संवेदनाओं पर आधारित राष्ट्रीय चेतना के विकास पर बल दिया। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में प्रारंभ स्वदेशी आंदोलन में अपनी आरंभिक भागीदारी के बाद, वे धीरे-धीरे 1907 के आसपास मुख्यधारा की राष्ट्रवादी राजनीति से दूर हो गए।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रवींद्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण में अंतर्निहित प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित थेः
(i) सार्वभौमिक दृष्टिकोण रखनाः रवींद्रनाथ टैगोर राष्ट्रवाद की संकीर्ण और उग्र अवधारणा के विरुद्ध थे। ऐसा इसलिए क्योंकि राष्ट्रवाद की संकीर्ण और उग्र अवधारणा किसी भौगोलिक सीमा के भीतर रहने वाले लोगों के समूह विशेष में शक्ति को संगृहीत करने पर केंद्रित थी। वे राष्ट्रवाद की अधिक समावेशी और सार्वभौमिक अवधारणा पर विश्वास रखते थे। इस अवधारणा में केवल राष्ट्रीयता के विभिन्न समूहों को ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जगत को शामिल किया गया था।
(ii) मानवतावाद को सर्वोपरि माननाः रवींद्रनाथ टैगोर का मानना था कि कोई देश मानवता के आदर्शों से ऊपर नहीं होता है। उनके अनुसार भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, राष्ट्रवाद की यूरोपीय अवधारणाओं से प्रेरित है जिसका उद्देश्य राष्ट्र के लोगों के लिए राजनीतिक और आर्थिक शक्ति प्राप्त करना है। इस प्रकार, उन्होंने मानवतावाद के सार्वभौमिक रूप को प्रतिपादित किया। मानवतावाद के इस रूप में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सीमाओं और मतभेदों से परे मानवीय अस्तित्व के लिए प्रयास करना चाहिए।
(iii) भारतीय मूल्यों पर बल देनाः रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार, पूंजीवाद और मशीनीकरण के पश्चिमी विचारों को समाहित करने वाले राष्ट्रवाद के प्रचलित विचार भारतीय मूल्यों के विरुद्ध थे। इन मूल्यों में आत्म-स्वायत्तता, बहुलवाद और धार्मिक सहिष्णुता आदि शामिल हैं। भारत जैसे समृद्ध इतिहास और विविधता वाले देश के लिए ये मूल्य महत्वपूर्ण थे।
(iv) नैतिकता युक्त राजनीति का समर्थनः रवींद्रनाथ टैगोर इस बात के विरोधी थे कि सत्य, न्याय एवं मानवता के गुणों की आहुति देकर निर्मम एवं हिंसक राष्ट्रवाद और देश के प्रति अंधभक्ति को अपनाया जाए।
(v) राष्ट्रवाद के उग्र रूप के विरुद्ध थेः उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सशस्त्र संघर्ष सहित राष्ट्रवाद के बहिष्कृत और उग्र रूप का विरोध किया। उनके अनुसार राष्ट्रवाद का यह विचार ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए भी उपयुक्त नहीं है। क्योंकि इससे एक शांतिप्रिय देश की भारत की छवि धूमिल हो सकती थी। इसके विपरीत, रवींद्रनाथ टैगोर ने विविधता को अपनाने, शांतिपूर्ण तरीके से सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक एवं कलात्मक परंपराओं के महत्व पर बल दिया।
निष्कर्ष:
रवींद्रनाथ टैगोर का राष्ट्रवाद संबंधी दृष्टिकोण तत्कालीन भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन की मुख्यधारा से अलग था। हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय मानस को जागृत करने और सामाजिक न्याय की दिशा में उनके कार्यों के कारण, उन्हें महात्मा गांधी द्वारा ‘गुरुदेव’ की उपाधि दी गई थी।
साथ ही, प्रख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने उन्हें आधुनिक भारत के ‘चार संस्थापकों’ में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है। इन संस्थापकों में उनके अतिरिक्त महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और डॉ. भीम राव अम्बेडकर शामिल हैं।