प्रश्न: “ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति वास्तव में भारत के विऔद्योगीकरण पर आधारित थी।” दिए गए कथन का परीक्षण कीजिए।
Que. “Britain’s Industrial Revolution was actually premised upon the deindustrialisation of India.” Examine the statement.
दृष्टिकोण: (i) औद्योगिक क्रांति और भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में संक्षेप में टिप्पणी करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए। (ii) स्पष्ट कीजिए कि ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति किस प्रकार भारत के विऔद्योगीकरण पर आधारित थी। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
‘औद्योगिक क्रांति’ की शुरुआत सन् 1760 के आस-पास ग्रेट ब्रिटेन में हुई थी। यह विश्व इतिहास में एक क्रांतिकारी परिवर्तन साबित हुई। यह तर्क दिया जाता है कि ब्रिटिश शासन ने अपनी अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को सुनियोजित तरीके से नष्ट कर दिया। जब अंग्रेज़ भारत आए थे उस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 23% थी, लेकिन जब अंग्रेज़ भारत छोड़ कर गए, तब यह हिस्सेदारी 4% से भी कम हो गई थी।
ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति को भारत के विऔद्योगीकरण से निम्नलिखित तरीके से बढ़ावा मिलाः
(i) स्थानीय उद्योगों का विनाशः अंग्रेजों ने ब्रिटेन को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से परंपरागत अर्थव्यवस्थाओं को नियंत्रित किया और उन्हें परिवर्तित कर दिया। उदाहरण के लिए: भारत का स्थानीय ‘हथकरघा उद्योग’ ब्रिटिश कारखानों में मशीन निर्मित सस्ते कपड़ों से प्रतिस्पर्धा न कर पाने के कारण नष्ट हो गया। ब्रिटिश नीतियां इंग्लैंड में निर्मित वस्तुओं के आयात के प्रति अनुकूल थीं, जबकि भारतीय उत्पादों के निर्यात के कारोबार पर प्रतिबंध लगाती थीं। दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक ‘पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया’ में इस तथ्य को उजागर किया था।
(ii) श्रमिक, कच्चे माल और बाजार का स्रोतः भारत ब्रिटेन की सबसे महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों में से एक बन गया। यह ब्रिटेन के लिए श्रमिक, कच्चा माल और बाजार उपलब्ध करवाता था। यद्यपि बलात् श्रम और कम मजदूरी ने ब्रिटिश उद्योगपतियों को समृद्ध बना दिया, लेकिन भारत के स्थानीय उद्योगों को इसका नुकसान उठाना पड़ा। सन् 1760 में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 2.5 मिलियन पौंड कच्चा कपास आयात करता था सन् 1787 में यह आयात बढ़कर 22 मिलियन पौंड तक पहुंच गया। इस बीच, भारत ब्रिटिश निर्यातों का विश्व में सबसे बड़ा खरीददार था और ब्रिटिश सिविल सेवकों के लिए उच्च वेतन वाले रोजगार का स्रोत भी बन गया था।
(iii) व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करनाः अंग्रेजों ने वस्त्र व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। कंपनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल एकत्रित करने और कपड़ों की गुणवत्ता जांचने के लिए वेतन भोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें ‘गुमाश्ता’ कहा जाता था।
(iv) भारी कराधानः आर.पी. दत्त के अनुसार, ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के वित्तपोषण के लिए भारत से पूंजी ली गई थी। सन् 1765 और 18 के बीच, अंग्रेजों ने भारत से प्रतिवर्ष लगभग 18,000,000 पाउंड की वसूली की थी।
(v) रेलवे का विस्तारः 1854 और 1947 के बीच, भारत में रेलवे का विस्तार हुआ और इसके लिए इंग्लैंड से लगभग 14,400 लोकोमोटिव का आयात किया गया। रेलवे ने भारत के विशाल आंतरिक भूभागों को एक बाज़ार के रूप में खोल दिया। इससे श्रमिकों को खेतों और खदानों तक पहुंचाने में भी मदद मिली। इसका उपयोग इंग्लैंड के कारखानों को चलाने के लिए कच्चा माल भेजने हेतु किया जा सकता था।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, भारतीय घरेलू अर्थव्यवस्था का सुनियोजित तरीके से विनाश करना ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति के लिए महत्वपूर्ण था। वास्तव में, इसने ब्रिटेन की औपनिवेशिक आकांक्षाओं को बल प्रदान किया। इस औद्योगिक क्रांति से ब्रिटेन में लोगों के जीवन स्तर, तकनीकी क्षमताओं और आर्थिक शक्ति में सुधार हुआ।
इसके परिणामस्वरूप उसकी उपनिवेश बनाने की क्षमता और भी अधिक हो गई। इसने एक चक्र का निर्माण किया, उपनिवेशवाद ने ब्रिटिश औद्योगिक संवृद्धि का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप उसके वैश्विक विस्तार और दमन को और बढ़ावा मिला।