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प्रश्न: आप इस विचार को, कि गुप्तकालीन सिक्काशास्त्रीय कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में नितांत दर्शनीय नहीं है, किस प्रकार सही सिद्ध करेंगे?

How do you justify the view that the level of excellence of the Gupta numismatic art is not at all noticeable in later times?

उत्तर: गुप्त काल भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग था, जो कला, संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र में अपनी विशेष उपलब्धियों के लिए प्रसिद्ध है। इस काल में सिक्काशास्त्र की कला ने भी अद्वितीय विकास किया, जो बाद के समय में दिखाई नहीं देती।

(i) गुप्त सम्राटों ने अपने सिक्कों के माध्यम से धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विचारों को व्यक्त किया। इन सिक्कों में सम्राटों के चित्र, उनके देवताओं के चित्रण और विभिन्न धार्मिक प्रतीकों का समावेश था। यह कला उस समय की समृद्धि और विविधता को दर्शाती है।

(ii) गुप्तकालीन सिक्कों का शिल्प अत्यंत उत्कृष्ट था। सिक्कों का आकार छोटा था, लेकिन उनकी कला में शुद्धता और उत्कृष्टता थी। प्रत्येक सिक्के पर स्पष्ट चित्रांकन और विवरण होता था, जो गुप्त काल की उच्च शिल्पकला को प्रमाणित करता है।

(iii) गुप्त काल के सिक्कों में विशेष रूप से सम्राटों की छवियाँ और देवताओं के चित्र होते थे। ये चित्र न केवल सम्राटों के शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक थे, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता और विविधता का भी संकेत थे। सिक्कों की यह विशेषता बाद के समय में गायब हो गई।

(iv) मौर्यकाल और गुप्तकाल के सिक्कों में तकनीकी और कला कौशल का स्तर बेहद उच्च था। लेकिन मध्यकाल और बाद के समय में सिक्कों पर उतना सटीक और सुंदर चित्रण देखने को नहीं मिलता। हालांकि सिक्कों के आकार में वृद्धि हुई, लेकिन कला में गिरावट आई।

(v) सिक्कों पर सम्राटों की छवियाँ और उनके द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों का चित्रण गुप्तकाल की कला का महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह दर्शाता है कि कला और धर्म का एक गहरा संबंध था, जो बाद के समय में सिक्कों में नहीं दिखाई दिया।

(vi) गुप्तकालीन सिक्कों में धार्मिक विविधता का स्पष्ट चित्रण था। इन सिक्कों में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के प्रतीक और देवताओं के चित्र थे। बाद के समय में यह धार्मिक सहिष्णुता सिक्कों पर उतने स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई दी।

(vii) गुप्तकाल के सिक्के न केवल कला के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे, बल्कि यह उस समय की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को भी दर्शाते थे। इन सिक्कों का उपयोग राजनीतिक शक्ति, सांस्कृतिक पहचान और धर्म के प्रचार के लिए किया जाता था।

(viii) बाद के समय में सिक्कों की गुणवत्ता में गिरावट आई। गुप्तकाल की तरह बाद के सिक्कों में चित्रण की स्पष्टता और शिल्पकला में उतनी उन्नति नहीं देखी गई। सिक्के बड़े आकार के होने लगे, लेकिन उनकी डिजाइन में बारीकी की कमी आई।

निष्कर्षतः, गुप्तकालीन सिक्काशास्त्र कला के सर्वोत्तम उदाहरण के रूप में प्रस्तुत होता है। उनकी शिल्पकला और धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग अन्य किसी काल में नहीं देखा गया। इस प्रकार, गुप्तकाल के सिक्कों की उत्कृष्टता बाद के समय में प्राप्त नहीं की जा सकी, जो गुप्तकाल की कला का अद्वितीय योगदान है।

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