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प्रश्न: भारत में चित्रकला की एक अत्यधिक समृद्ध और लंबी परंपरा रही है। भित्ति चित्रकला पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए चर्चा कीजिए।

Que. India has a very rich and long tradition of paintings. Discuss with special focus on mural paintings.

दृष्टिकोण:

(i) दिए गए कथन की उदाहरण सहित पुष्टि करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।

(ii) भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित भित्ति चित्रकला की परंपरा की उदाहरण सहित चर्चा कीजिए।

(iii) तदनुसार उपयुक्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

परिचय:

भारत में चित्रकला की परंपरा विश्व की सबसे उत्कृष्ट परंपराओं में से एक रही है। यह समय के साथ विभिन्न धार्मिक मान्यताओं, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय परंपराओं, शासकों एवं जनमानस की सामाजिक एवं राजनीतिक आकांक्षाओं को समाविष्ट करके विकसित हुई है।

भारतीय चित्रकला की परंपरा पुरापाषाण युग से चली आ रही है जिसके साक्ष्य भीमबेटका और लखुडियार (Lakhudiyar) के शैल चित्रों से प्राप्त होते हैं। इन शैल चित्रों को रेखाओं और ज्यामितीय पैटर्न द्वारा दर्शाया गया था। 5वीं शताब्दी ई. में रचित विष्णुधर्मोत्तर पुराण के चित्रसूत्र नामक अध्याय में चित्रकला की परंपराओं की संबंधित विशेष जानकारियों का उल्लेख किया गया है। चित्रसूत्र को सामान्य रूप से भारतीय कला और विशिष्ट रूप से भारतीय चित्रकला का स्रोत ग्रंथ माना जाना चाहिए।

चित्रकला की परंपरा समय के साथ भित्ति चित्रकला, लघु चित्रकला, रूप चित्रकला (Portrait painting), साम्राज्यवादी चित्रकला आदि में विकसित हुई। चित्रकला की विभिन्न शैलियों को विभिन्न शासकों और क्षेत्रों द्वारा संरक्षण मिला। इससे चित्रकला की विभिन्न शैलियों अर्थात्, राजस्थानी शैली, गुजराती शैली, पहाड़ी शैली आदि का विकास हुआ।

भित्ति चित्रकला को प्रत्यक्ष रूप से दीवारों पर बनाया जाता है। यह भारतीय कला एवं चित्रकला की परंपरा के सबसे विशिष्ट विशेषताओं में से एक हैं।

भित्ति चित्रकला के निम्नलिखित कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो पूरे भारत में पाए जाते हैं-

(i) अजंता की भित्ति चित्रकलाः अजंता ही एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहां ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी और पांचवीं शताब्दी ईस्वी की चित्रकला पाई जाती है। इन चित्रों की विषय-वस्तु विशेष रूप से बौद्ध धर्म और अधिकांशतः जातक कथाओं से संबंधित है। अजंता गुफा की सबसे उल्लेखनीय चित्रकला पद्मपाणि की है। ध्यातव्य है कि पद्मपाणि बोधिसत्व की एक सुंदर अलंकृत मानवाकार की प्रतिमा है।

(ii) एलोरा की भित्ति चित्रकलाः कैलाशनाथ मंदिर की छत पर भगवान शिव को समर्पित चित्रकारी की गई है, जो तत्कालीन शिल्प कौशल की उत्कृष्टता का प्रभावशाली उदाहरण है। इस चित्रकला को राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम के संरक्षण में निर्मित किया गया था।

(iii) सित्तनवासल की भित्ति चित्रकलाः यहां पर पाए गए चित्रों का जैन धर्म के विषयों और प्रतीकों के साथ घनिष्ठ संबंध है। इन चित्रकलाओं की रूपरेखाओं को हल्की लाल पृष्ठभूमि पर गाढ़े रंग से चित्रित किया गया है। इसके उल्लेखनीय चित्रकलाओं में अत्यंत सुंदर एक दृश्य अलंकृत है, जिसमें कमल के फूल वाला एक तालाब हैं, उसमें पक्षी, हांथी और भैसों के साथ-साथ फूल तोड़ता हुआ एक युवक दिखाया गया है।

(iv) चोल कालीन भित्ति चित्रः राजराज चोल के शासनकाल में बृहदेश्वर मंदिर की दीवारों पर इन चित्रों को बनाया गया था। इन चित्रों में भगवान शिव से संबंधित विभिन्न आख्यानों और रूपों को दर्शाया गया है।

(v) विजयनगर की भित्ति चित्रकलाः हम्पी में स्थित विरुपाक्ष मंदिर के मंडप की छत पर बने अनेक चित्रों में रामायण और महाभारत के प्रसंगों को दर्शाया गया है। आंध्र प्रदेश में स्थित लेपाक्षी मंदिर की दीवारें विजयनगर परंपरा की विकसित चित्रात्मक भाषा (Pictorial language) का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इसमें चेहरे को मुद्राओं के रूप में तथा आकृतियों और वस्तुओं को द्वि-आयामी रूपों में दर्शाया गया है।

(vi) केरल की भित्ति चित्रकला: केरल के चित्रकारों ने नायक और विजयनगर शैली की संयुक्त परंपरा का विकास किया है। इन भित्ति चित्रों में स्थानीय परंपराओं जैसे कथकली, रामायण, महाभारत और कलाम एझुथु (Kalam Ezhuthu) आदि के तत्व पाए जाते हैं। इन भित्ति चित्रों में जीवंत और चमकीले रंगों का प्रयोग किया जाता है, जो मानव की त्रि-आयामी आकृतियों का निरूपण करते हैं। कृष्णापुरम महल, पद्मनाभपुरम महल और त्रिशूर के वडक्कुनाथन मंदिर आदि में इस शैली के भित्ति चित्रों को देखा जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय चित्रकला की लंबी और समृद्ध परंपरा को संरक्षित करने एवं उसे बढ़ावा देने की आवश्यकता है। केरल के चेरपुलास्सेरी में एक परिसर में 700 फीट लंबी दीवार पर वॉल ऑफ पीस आधुनिक भित्ति चित्रकला निर्मित है। इस तरह की पहल इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

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