प्रश्न: जीएम सरसों के पर्यावरणीय विमोचन पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में शामिल कानूनी और पर्यावरणीय विचारों का विश्लेषण कीजिए।
Analyze the legal and environmental considerations involved in the Supreme Court’s verdict on the environmental release of GM mustard.
उत्तर: जीएम सरसों के पर्यावरणीय विमोचन पर सर्वोच्च न्यायालय का विभाजित निर्णय भारत में पर्यावरण संरक्षण और जीएम फसलों के विनियमन के लिए कानूनी एवं वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह निर्णय विस्तृत जोखिम मूल्यांकन और प्रक्रिया पारदर्शिता की आवश्यकता को स्पष्ट करता है।
कानूनी पक्ष
(1) GEAC की प्रक्रियात्मक वैधता: सर्वोच्च न्यायालय ने यह जांचा कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के नियमों, दिशानिर्देशों और जैव सुरक्षा परीक्षणों की वैधानिक प्रक्रिया का विधिवत पालन करती है या नहीं।
(2) न्यायिक समीक्षा की सीमाएं: निर्णय न्यायिक समीक्षा के सिद्धांतों पर आधारित था, जिसमें कोर्ट केवल GEAC की प्रक्रिया की वैधता की जांच करता है, न कि वैज्ञानिक निर्णय की। न्यायालय ने निष्पक्षता, पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी की जांच को प्रमुख माना।
(3) परामर्श व हितधारक भागीदारी: न्यायालय ने यह मूल्यांकन किया कि क्या GEAC द्वारा सार्वजनिक परामर्श, विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें और राज्य सरकारों से संवाद जैसे आवश्यक हितधारक भाग लिए गए। परामर्श की न्यूनता को संभावित प्रक्रियागत त्रुटि माना गया।
(4) अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुपालन: निर्णय में कार्टाजेना प्रोटोकॉल और जैविक विविधता संधि जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों में भारत की प्रतिबद्धताओं की समीक्षा की गई। GEAC को इन दायित्वों की कसौटी पर कसते हुए न्यायालय ने वैश्विक मानकों के अनुरूप कार्रवाई अपेक्षित की।
(5) राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता: कोर्ट ने GM फसलों के संबंध में एक एकीकृत, वैज्ञानिक और विधिसम्मत राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता पर बल दिया। निर्णय में सरकार को निर्देशित किया गया कि वह नीति-निर्माण हेतु संसद और वैज्ञानिक समुदाय को समान रूप से सम्मिलित करे।
पर्यावरणीय पक्ष
(1) जैव विविधता पर जोखिम: GM सरसों से पराग-प्रवेश के माध्यम से जंगली या पारंपरिक सरसों की किस्मों में अनपेक्षित जीन स्थानांतरण हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने GEAC से यह पूछा कि क्या इस जैव विविधता क्षरण के लिए पर्याप्त जैव-सुरक्षा उपाय लागू हुए हैं।
(2) पारिस्थितिक असंतुलन की संभावना: GM सरसों के उपयोग से मृदा सूक्ष्मजीव, जल निकायों और परागणकर्ता जैविकों पर प्रतिकूल प्रभाव की संभावना बनी रहती है। न्यायालय ने पारिस्थितिकीय संतुलन हेतु GEAC द्वारा प्रस्तुत जोखिम विश्लेषण की वैज्ञानिक पर्याप्तता पर प्रश्न उठाया।
(3) दीर्घकालिक प्रभावों की निगरानी: फसलों के पर्यावरण में विमोचन के पश्चात उनके प्रभावों की दीर्घकालिक निगरानी हेतु संस्थागत तंत्र की अनुपस्थिति को सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर चिंता माना। निगरानी के अभाव में संभावित जोखिमों का पूर्वानुमान करना कठिन होता है।
(4) स्थायित्व बनाम क्षति: सर्वोच्च न्यायालय ने यह विश्लेषण किया कि क्या GM सरसों की उत्पादकता में संभावित वृद्धि जैविक क्षति, पारिस्थितिक जोखिम और परंपरागत कृषि विविधता के क्षरण से अधिक लाभप्रद है। लाभ-हानि संतुलन का सम्यक् मूल्यांकन आवश्यक माना गया।
(5) स्वास्थ्य निहितार्थ: GM सरसों के मानव स्वास्थ्य पर संभावित प्रभावों को लेकर न्यायालय ने वैज्ञानिक डेटा की स्पष्टता और पारदर्शिता की कमी पर आपत्ति जताई। GEAC को यह स्पष्ट करना पड़ा कि खाद्य सुरक्षा के मानकों की पूर्ति सुनिश्चित की गई है।
सर्वोच्च न्यायालय का विभाजित निर्णय एक व्यापक कानूनी ढांचे की आवश्यकता को उजागर करता है, जो जीएम फसलों के पर्यावरणीय प्रभावों के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। भारत को एक सशक्त नीति और पारदर्शी निगरानी तंत्र की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।