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प्रश्न: प्राचीन भारत में भू-राजस्व प्रणाली के सिद्धान्त और व्यवहार का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।

Critically evaluate the theory and practice of land revenue system in ancient India. [UPSC CSE 2016]

उत्तर: प्राचीन भारत में भू-राजस्व प्रणाली ने राज्य की आर्थिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह प्रणाली कृषि पर आधारित थी और राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि और कृषि से आता था। 

(i) भू-राजस्व का सिद्धांत भूमि के स्वामित्व पर आधारित था। शासक भूमि के स्वामी होते थे और किसान उस भूमि पर काम करके राज्य को राजस्व अदा करते थे। यह व्यवस्था शासक और कृषक वर्ग के बीच रिश्तों को परिभाषित करती थी।

(ii) राजस्व की दर और उसके संग्रहण की प्रक्रिया परिभाषित थी। मौर्य काल में चंद्रगुप्त मौर्य ने भूमि की पैमाइश और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को प्रभावी किया। इस प्रक्रिया से भूमि पर कर वसूली सरल हुई और एक निश्चित मानक स्थापित हुआ।

(iii) गुप्त काल में भी भू-राजस्व प्रणाली का महत्वपूर्ण स्थान था। शासक ने इस प्रणाली को संरचित किया, लेकिन उच्च कर दरों के कारण किसानों पर अत्यधिक बोझ पड़ा। इससे उत्पादन में कमी और सामाजिक असंतुलन पैदा हुआ।

(iv) भू-राजस्व प्रणाली के व्यवहार में राज्य की नीति के अनुसार कर दरों में उतार-चढ़ाव होता था। शासकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कर दरों को विभिन्नताएँ दीं, जिससे कुछ स्थानों पर करों का बोझ बढ़ गया था।

(v) मौर्य काल में भू-राजस्व की दरों का निर्धारण उत्पादन के हिसाब से किया जाता था। किसान से एक निश्चित हिस्सा लिया जाता था, लेकिन कभी-कभी ये दरें अत्यधिक होती थीं, जो किसानों के लिए कठिनाई का कारण बनती थीं।

(vi) गुप्त काल में, भू-राजस्व संग्रहण की प्रक्रिया अधिक जटिल और विस्तृत हो गई थी। भूमि की माप और उपज का निर्धारण किया जाता था। फिर भी, किसानों पर करों का अत्यधिक दबाव था। इस समय किसानों की स्थिति अधिक दयनीय थी।

(vii) भू-राजस्व प्रणाली का व्यवहार शासक की नीतियों पर निर्भर करता था। कभी-कभी यह प्रणाली अत्यधिक शोषणकारी होती थी, जिससे किसानों की स्थिति में और भी गिरावट आती थी। इस कारण समाज में असंतुलन उत्पन्न हो जाता था।

(viii) भू-राजस्व वसूली में कभी-कभी अत्यधिक सख्ती अपनाई जाती थी। इसके परिणामस्वरूप, किसानों को अत्यधिक करों का भुगतान करना पड़ता था, जिससे उनका जीवन संकट में पड़ जाता था। इसके कारण सामाजिक विद्रोह और असंतोष पैदा होते थे।

निष्कर्षतः, प्राचीन भारत की भू-राजस्व प्रणाली का सिद्धांत राज्य की आर्थिक शक्ति को बढ़ाने पर आधारित था, लेकिन इसके व्यवहार ने किसानों पर अत्यधिक दबाव डाला। यह प्रणाली राज्य की स्थिरता का आधार तो थी, लेकिन इसके शोषण ने समाज में असंतुलन और संघर्षों को जन्म दिया।

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