प्रश्न: भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र के विकास और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए। साथ ही क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए और देश में ई-कॉमर्स के संतुलित और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत उपाय सुझाइए।
Discuss the growth of the e-commerce sector in India and its impact on the economy. Also analyze the major challenges faced by the sector and suggest policy measures to promote a balanced and inclusive growth of e-commerce in the country. Analyze the contribution of the space sector to India’s GDP.
उत्तर: ई-कॉमर्स वह प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से होती है। भारत में इसके प्रसार ने उपभोक्ता व्यवहार, बाज़ार संरचना और व्यापारिक प्रणालियों को बदल दिया है। यह डिजिटल अर्थव्यवस्था का मुख्य घटक बनते हुए समावेशी विकास की दिशा में अवसर प्रस्तुत करता है।
भारत में ई-कॉमर्स का विकास
(1) डिजिटल आधारभूत संरचना का विस्तार: भारत नेट, मोबाइल इंटरनेट और 5G सेवाओं के प्रसार ने ई-कॉमर्स को ग्रामीण तथा दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचाया है। इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 850 मिलियन पार कर गई है, जिससे डिजिटल लेनदेन सुगम हुआ है और ऑनलाइन व्यापार का भूगोल व्यापक रूप से विस्तृत हुआ है।
(2) सरकारी नीतियों का प्रभाव: ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं ने डिजिटल व्यापार को संस्थागत समर्थन प्रदान किया है। इसके परिणामस्वरूप MSMEs, स्टार्टअप्स और नवाचार आधारित कंपनियाँ ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी में सहभागी बन पाई हैं, जिससे यह क्षेत्र रोजगार और राजस्व स्रोत बन गया है।
(3) महामारी और उपभोक्ता व्यवहार: कोविड-19 के बाद उपभोक्ता डिजिटल खरीदारी की ओर तेजी से झुके। किराना, दवाइयाँ, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं ई-कॉमर्स आधारित हो गईं। इस संक्रमणकाल में ई-कॉमर्स ने जीवन-रक्षा की भूमिका निभाई और एक वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला के रूप में खुद को स्थापित किया।
(4) निवेश और स्टार्टअप संस्कृति: भारत का ई-कॉमर्स क्षेत्र विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और वेंचर पूंजी का आकर्षण बना है। 2023 में इस क्षेत्र में $15 बिलियन से अधिक का निवेश हुआ, जिससे स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा मिला और उद्यमशीलता के नए द्वार खुले, विशेषकर उपभोक्ता टेक्नोलॉजी सेगमेंट में।
(5) बाजार मॉडल में विविधता: ई-कॉमर्स अब केवल B2C तक सीमित नहीं है, बल्कि B2B, C2C और D2C मॉडल भी उभर रहे हैं। इससे न केवल बड़े ब्रांड बल्कि स्थानीय विक्रेताओं और कारीगरों को भी सीधा ग्राहक तक पहुँच प्राप्त हो रही है, जिससे समावेशी आर्थिक भागीदारी को प्रोत्साहन मिला है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
(1) रोजगार और आय सृजन: ई-कॉमर्स प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के नए अवसरों का सृजन कर रहा है। 2024 में इससे जुड़े लगभग 1.6 करोड़ रोजगार अनुमानित हैं। लॉजिस्टिक्स, आईटी, ग्राहक सेवा और डिजिटल विपणन जैसे क्षेत्रों में इसकी भूमिका निर्णायक हो रही है, विशेषकर युवा जनसंख्या हेतु।
(2) MSME और महिला भागीदारी: छोटे व्यवसायों और महिला उद्यमियों को कम पूंजी में राष्ट्रीय ग्राहक आधार तक पहुंच मिल रही है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स ने बिक्री, विपणन और वितरण को सुलभ बनाते हुए लघु उत्पादकों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक अवसर सृजित किए हैं, जिससे आर्थिक सहभागिता और आत्मनिर्भरता को बल मिला है।
(3) आपूर्ति श्रृंखला का आधुनिकीकरण: ई-कॉमर्स ने तकनीक-आधारित लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग और लास्ट माइल डिलीवरी प्रणालियाँ विकसित की हैं। इससे समयबद्धता, उत्पाद ट्रैकिंग और लागत-प्रभाविता में सुधार आया है। यह संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को संगठित बनाते हुए उद्योग और ग्राहकों के मध्य भरोसेमंद संपर्क कायम कर रहा है।
(4) कर प्रणाली और डिजिटल समावेशन: जीएसटी के तहत पंजीकरण और ई-इनवॉइसिंग की अनिवार्यता से कर आधार व्यापक हुआ है। ई-कॉमर्स लेन-देन पारदर्शी बन रहे हैं, जिससे कर संग्रहण बढ़ा है। साथ ही, डिजिटल भुगतान प्रणाली ने बैंक रहित वर्गों को औपचारिक अर्थव्यवस्था से जोड़ने का कार्य किया है।
(5) उपभोक्ता सशक्तिकरण: ई-कॉमर्स उपभोक्ताओं को उत्पाद तुलना, मूल्य पारदर्शिता, समीक्षाओं और रिटर्न सुविधा प्रदान करता है। इससे उपभोक्ता निर्णय अधिक सूचित और अधिकार-संपन्न हो गए हैं। प्रतिस्पर्धा बढ़ने से गुणवत्ता और सेवा में सुधार हुआ है, जिससे उपभोक्ता केंद्रित बाजार संरचना का उद्भव हुआ है।
प्रमुख चुनौतियाँ व समाधान
(1) डेटा संरक्षण और गोपनीयता: उपभोक्ताओं का डेटा सुरक्षा अधिनियम 2023 के बावजूद अनेक प्लेटफॉर्म उपयुक्त नियंत्रण नहीं अपनाते। डेटा चोरी, प्रोफाइलिंग और अनधिकृत उपयोग की आशंकाएं बनी रहती हैं। सख्त अनुपालन, स्वतंत्र डेटा नियामक और उपभोक्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने हेतु व्यापक निगरानी तंत्र की स्थापना आवश्यक है।
(2) बाजार में एकाधिकार का खतरा: बड़े प्लेटफॉर्म्स अपने सहयोगी विक्रेताओं को प्राथमिकता देकर स्वतंत्र विक्रेताओं को हाशिए पर डालते हैं। इससे प्रतिस्पर्धा में असमानता आती है। ई-कॉमर्स नीति में तटस्थ एल्गोरिथ्म, निष्पक्ष प्रदर्शन और व्यापारिक विविधता सुनिश्चित करने हेतु सशक्त विनियामक हस्तक्षेप आवश्यक है।
(3) ग्रामीण और सीमांत क्षेत्रों की सीमाएँ: डिजिटल साक्षरता, भाषाई पहुंच और तकनीकी उपकरणों की कमी से ग्रामीण उपभोक्ता ई-कॉमर्स से वंचित हैं। डिजिटल अवसंरचना निवेश, क्षेत्रीय भाषाओं में एप्स और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से इस खाई को पाटकर समावेशी ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी का विकास किया जाना चाहिए।
(4) उपभोक्ता अधिकार और शिकायत निवारण: रिटर्न, रिफंड और नकली उत्पादों से जुड़ी शिकायतों के समाधान हेतु मौजूदा ढांचा कमजोर है। ई-कॉमर्स उपभोक्ता संरक्षण नियमों को प्रभावी कार्यान्वयन, समयबद्ध निवारण और प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु सुदृढ़ कानूनी संरचना आवश्यक है।
(5) स्पष्ट एवं समन्वित नीति का अभाव: वर्तमान नीति ढांचे में डेटा लोकलाइजेशन, एफडीआई नियम और प्लेटफॉर्म संचालन को लेकर अस्पष्टता है। एकल, पारदर्शी और तकनीक-तटस्थ राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति की आवश्यकता है जो नवाचार, प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता हितों को संतुलित करते हुए क्षेत्र को दिशा दे सके।
ई-कॉमर्स भारतीय अर्थव्यवस्था का परिवर्तनकारी घटक बन चुका है, परंतु इसका सतत और समावेशी विकास केवल सुदृढ़ नियमन, व्यापक अवसंरचना और डेटा-सुरक्षा जैसे आधारों पर ही संभव है। यदि पारदर्शिता, प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए, तो यह क्षेत्र समृद्ध भविष्य गढ़ सकता है।