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प्रश्न: भारत में मध्यकाल के दौरान नई भाषाएं विकसित हुईं, जिनके कारण संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। विवेचना कीजिए। 

Que. During the medieval period in India, new languages were introduced, which led to a remarkable growth in the sphere of culture and literature. Discuss. 

दृष्टिकोण:

(i) परिचय: मध्यकाल में साहित्य के विकास का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।

(ii) मुख्य भाग: उन कारकों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण नई भाषाएं विकसित हुईं। साथ ही, नई भाषाओं के उद्भव के कारण संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में हुए विकास पर प्रकाश डालिए।

(iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

परिचय:

मध्यकाल में साहित्य के समृद्ध रूप के विकास के साथ-साथ उर्दू जैसी भाषाओं का विकास हुआ। इस काल के साहित्यिक इतिहास की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक, भारत के विभिन्न भागों में क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्य का विकास है।

मध्यकाल के दौरान नई भाषाओं के विकास में योगदान देने वाले महत्वपूर्ण कारक:

(i) गुप्तोत्तर काल में लगभग 7 वीं 8वीं शताब्दी से क्षेत्रीय सत्ताओं और संस्कृतियों का आविर्भाव हुआ। क्षेत्रवाद के विकास के परिणामस्वरूप अपभ्रंश से क्षेत्रीय भाषाओं के आरंभिक रूपों की उत्पत्ति हुई।

(ii) 10वीं-11वीं शताब्दी में प्रकाशित संस्कृत साहित्य स्वाभाविकताहीन और अलोकप्रिय था।

(iii) सल्तनत काल के दौरान आधिकारिक या राजभाषा के रूप में संस्कृत का प्रतिस्थापन फारसी द्वारा किए जाने के कारण संस्कृत साहित्य के पतन की प्रक्रिया और भी अधिक तीव्र हो गई।

(iv) सल्तनत काल के दौरान कई राज्यों ने क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया क्योंकि फारसी देश के कई हिस्सों में एक अपरिचित भाषा थी।

(v) नाथपंथी आंदोलन और भक्ति एवं सूफी आंदोलनों के विकास ने भी क्षेत्रीय साहित्य के तीव्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

उपर्युक्त कारकों के कारण नई भाषाओं के उद्भव से संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ:

(i) फारसीः इसकी शुरुआत दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद हुई थी। अमीर खुसरो की रचनाएं भारतीय संदर्भ में रचित फारसी शैलियों को दर्शाती हैं। इसे सबक-ए-हिन्दी (भारतीय शैली) के नाम से जाना जाने लगा। फारसी साहित्य के महत्वपूर्ण योगदानों में इतिहास लेखन, धार्मिक सूफी साहित्य, संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद और पंजाबी, पश्तो/पुश्तु, सिंधी एवं कश्मीरी जैसी भाषाओं का विकास शामिल है।

(ii) हिन्दी: हिन्दी साहित्य का विकास विभिन्न उप-भाषाओं; जैसे- ब्रज भाषा, अवधी, राजस्थानी, मैथिली, भोजपुरी, मालवी, खड़ी बोली आदि में हुआ।

7वीं से 14वीं शताब्दी के बीच की अवधि को ‘वीरगाथा काल’ कहा जाता है। यह राजपूत शासक वर्ग के नैतिक मूल्यों और दृष्टिकोण का परिचायक था।

दूसरे चरण को भक्तिकाल (Age of devotion) के नाम से जाना जाता है। यह चरण भक्ति आंदोलन से प्रभावित था। इस चरण की शुरुआत कबीर के नेतृत्व में हुई। इस काल के भक्ति कवियों के दो वर्ग थेः सगुण कवि और निर्गुण कवि।

चिश्ती सूफी संतों ने भी हिन्दी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

(iii) उर्दू: अमीर खुसरो ने अपने छंदों की रचना फारसी लिपि का प्रयोग करते हुए उर्दू में की थी। दक्कन में उर्दू ने मानकीकृत साहित्यिक भाषा का दर्जा प्राप्त किया और वहां वीं शताब्दी में यह दक्खनी के नाम से जानी जाती थी। गेसू दराज की मिराज-उल आशिकी दक्खनी उर्दू की सबसे प्रारंभिक रचना है।

(iv) पंजाबी: इसकी शुरुआत बाबा फरीद की रचनाओं से हुई। इसका विकास गुरु नानक देव जी के भजनों तथा सिख गुरु अंगद देव द्वारा शुरू की गई एक विशिष्ट लिपि (गुरुमुखी) के द्वारा हुआ।

(v) बंगाली: बंगाली साहित्य में तीन मुख्य प्रवृत्तियां विकसित हुईं, जिनमें शामिल हैं- वैष्णव भक्ति काव्य, महाकाव्यों के अनुवाद और काव्यों के रूपांतर, और मंगल काव्य।

(vi) मराठीः यह भक्ति आंदोलन से काफी प्रभावित थी। संत एकनाथ, संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर ने मराठी को साहित्यिक भाषा के रूप में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कृतियों में सामाजिक सुधार, नैतिक मूल्यों और परमात्मा के व्यक्तिगत अनुभव पर जोर दिया गया था।

निष्कर्ष:

इस प्रकार, असमिया, उड़िया, गुजराती, तेलुगु और मलयालम जैसी कुछ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के आविर्भाव से भी संस्कृति और साहित्य में विकास हुआ। इन उभरती हुई नई भाषाओं ने आम लोगों के विचारों, भावनाओं और अनुभवों को अभिव्यक्ति प्रदान की। ये भाषाएं धार्मिक विश्वासों, सामाजिक भाष्यों और रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में आख्यानों को व्यक्त करने का माध्यम थीं।

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