प्रश्न: भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की वर्तमान स्थिति एवं कारणों का परीक्षण कीजिए। साथ ही, प्लास्टिक अपशिष्ट समस्या के समाधान में विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रणाली की भूमिका और प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिए।
Examine the current status and causes of plastic waste management in India. Also, discuss the role and effectiveness of the Extended Producer Responsibility (EPR) system in addressing the plastic waste problem.
उत्तर: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में प्लास्टिक कचरे का संग्रह, पृथक्करण, पुनर्चक्रण और निपटान शामिल है। विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) नीति के तहत उत्पादकों को उनके उत्पादों के जीवनचक्र के अंत तक उत्तरदायी बनाया जाता है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके।
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति
(1) अपशिष्ट उत्पादन का स्तर: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 9.3 से 10.2 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है। यह कचरा अधिकांशतः लैंडफिल में जमा हो जाता है, जिससे प्रदूषण और पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ती हैं।
(2) पुनर्चक्रण की असफलता: इस कचरे का बहुत कम हिस्सा पुनर्चक्रित किया जाता है, जबकि बाकी का हिस्सा लैंडफिल या खुले में पड़ा रहता है। इससे पर्यावरण में फैलने वाले प्लास्टिक कचरे की समस्या गहरी होती जा रही है।
(3) अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: पुनर्चक्रण की प्रक्रिया में अनौपचारिक क्षेत्र का बड़ा हिस्सा होता है। इस क्षेत्र में प्रबंधन की गुणवत्ता कम होती है, जिससे पर्यावरणीय खतरों में इजाफा हो रहा है और कार्यप्रणाली भी कमजोर है।
(4) बुनियादी ढांचे की कमी: ग्रामीण और छोटे शहरों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है। इसके कारण संग्रहण और निपटान की प्रक्रिया में कठिनाई उत्पन्न हो रही है और कचरे की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाती।
(5) सार्वजनिक जागरूकता की कमी: लोग प्लास्टिक के पर्यावरणीय प्रभाव और इसके उचित निपटान के तरीकों के बारे में जागरूक नहीं हैं। इस जागरूकता की कमी से कचरे का निपटान सही तरीके से नहीं हो पा रहा है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है।
भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण के कारण
(1) तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण: भारत की बढ़ती जनसंख्या और संपन्नता के कारण खपत तथा अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि हो रही है। शहरीकरण प्लास्टिक उत्पादों एवं पैकेजिंग की मांग को बढ़ाकर समस्या को और बढ़ा रहा है।
(2) अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना: भारत का अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना अपशिष्ट की बड़ी मात्रा के प्रबंधन के लिए अपर्याप्त है, जिसमें सैनिटरी लैंडफिल की तुलना में अनियंत्रित डम्पिंग स्थल अधिक हैं, जो निम्न स्तरीय निपटान उपायों और प्रथाओं को दर्शाता है।
(3) अपशिष्ट संग्रहण आँकड़ों में विसंगतियाँ: भारत की आधिकारिक अपशिष्ट संग्रहण दर 95% बताई गई है, जबकि शोध से पता चलता है कि वास्तविक दर लगभग 81% है, जिससे प्रबंधन दक्षता में बहुत बड़े अंतर का पता चलता है।
(4) खुले में अपशिष्ट का दहन: भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है तथा विषैले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं।
(5) अनौपचारिक क्षेत्र पुनर्चक्रण: अनियमित अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र में बहुत अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट का निपटान किया जाता है, जिसका आधिकारिक आँकड़ों में उल्लेख नहीं होता, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण के स्तर का अध्ययन और भी जटिल हो जाता है।
विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रणाली की भूमिका
(1) अपशिष्ट प्रबंधन में योगदान: EPR प्रणाली कंपनियों को उनके उत्पादों के जीवनकाल के अंत में उत्पन्न होने वाले कचरे का उचित निपटान, पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायित्व देती है। यह उत्पादकों को पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए प्रेरित करती है।
(2) पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना: EPR कंपनियों को उनके उत्पादों को इस प्रकार डिजाइन करने के लिए प्रेरित करती है कि वे पुनर्चक्रण योग्य हों और उपयोगकर्ता से कचरा एकत्र कर पुनर्चक्रण किया जा सके। इससे कचरे की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है।
(3) पर्यावरण को बचाना: EPR प्रणाली कंपनियों को टिकाऊ उत्पादों और पैकेजिंग को डिजाइन करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसके द्वारा पर्यावरणीय प्रदूषण को कम किया जा सकता है और प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।
(4) प्रदूषण को कम करना: EPR प्रणाली कंपनियों को उनके उत्पादों में खतरनाक पदार्थों के सुरक्षित निपटान के लिए प्रोत्साहित करती है। यह प्रदूषण को कम करने में मदद करती है, क्योंकि कचरे का निपटान और पुनर्चक्रण सुरक्षित तरीके से किया जाता है।
(5) संसाधन संरक्षण: EPR प्रणाली कंपनियों को पुनः उपयोग और नवीनीकरण के माध्यम से संसाधनों के संरक्षण को बढ़ावा देती है। इससे कच्चे माल की खपत कम होती है और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग बचता है, जिससे पर्यावरण पर दबाव कम होता है।
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में EPR प्रणाली को अपनाकर कचरे की समस्या को प्रभावी तरीके से हल किया जा सकता है। हालांकि, इसे सफल बनाने के लिए मजबूत प्रशासनिक समर्थन, बेहतर कानूनी ढांचा और जन जागरूकता की आवश्यकता है।