प्रश्न: ब्रिटिश राज के दौरान शासन (गवर्नेस), लोक कल्याण के एक माध्यम के बजाय भारत के शोषण का एक साधन था। विवेचना कीजिए।
Governance during the British Raj was an instrument of exploitation of India rather than a means of public welfare. Discuss.
दृष्टिकोण: (i) भारत में ब्रिटिश राज का संक्षिप्त परिचय दीजिए। (ii) चर्चा कीजिए कि किस प्रकार ब्रिटिश सरकार ने लोगों के कल्याण के लिए काम करने के बजाय भारत का शोषण किया। (iii) औपनिवेशिक शासन के दौरान अपनाई गई कुछ कल्याणकारी नीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (iv) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
ब्रिटिश सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से 1858 से 1947 में स्वतंत्रता प्रदान किए जाने तक भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। औपनिवेशिक शासन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 200 वर्षों तक जारी रहा। इस अवधि के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना और संचालन में शायद ही कोई कल्याणकारी भूमिका निभाई गई थी। वस्तुतः भारतीय अर्थव्यवस्था का संचालन व्यापक पैमाने पर औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य के हितों के अनुसार निर्धारित किया जाता था।
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का शोषण:
(i) भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण: 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में, विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी लगभग 23% थी। भारत की स्वतंत्रता के बाद यह हिस्सेदारी घटकर लगभग 3% रह गई। उदाहरण के लिए, 1813 के चार्टर अधिनियम द्वारा ब्रिटिश नागरिकों के लिए सस्ते और मशीन से बने कपड़ों के एकतरफा मुक्त व्यापार की अनुमति दे दी गई। इसके विपरीत, भारतीय वस्त्रों पर लगभग 80% का शुल्क लगाया गया था ताकि भारतीय कपड़े सस्ते उपलब्ध न हो सकें। यहां तक कि रेलवे को भारत के भीतरी इलाकों को जोड़ने के उद्देश्य के बजाय कच्चे माल के निर्यात को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से विकसित किया गया था।
(ii) विऔद्योगीकरण: इससे भारतीय कपड़ा उद्योग प्रभावित हुआ। इससे भारत तैयार माल के निर्यातक से कच्चे माल के निर्यातक तथा तैयार माल के आयातक में परिवर्तित हो गया।
(iii) ग्रामीणीकरण: विऔद्योगीकरण के कारण कई शहरों का पतन हुआ और भारत के ग्रामीणीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। कई कारीगरों ने कम लाभ और दमनकारी नीतियों के कारण अपने व्यवसायों को त्याग दिया एवं गांवों में जाकर कृषि कार्य करना प्रारंभ कर दिया।
(iv) किसानों की दरिद्रता: स्थायी बंदोबस्त जैसी नीतियों के कारण भूमि का हस्तांतरण हुआ। जमींदारों ने अपनी बढ़ी हुई शक्तियों के साथ तत्काल बेदखल करने की नीति को अपनाया। साथ ही उन्होंने उपज में अपने हिस्से को अधिकतम करने के लिए अवैध बकाया और ‘बेगार’ की मांग की।
(v) कृषि का व्यावसायीकरण: इसके द्वारा बड़ी संख्या में वाणिज्यिक फसलों को उगाने की शुरुआत हुई। इसने भूमि के स्वामित्व के हस्तांतरण की गति को भी बढ़ा दिया गया। इस प्रकार, कृषि के व्यवसायीकरण से भूमिहीन मजदूरों की संख्या में वृद्धि हुई। साथ ही, इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए बड़ी संख्या में महाजन, व्यापारी और बिचौलिए आकर्षित हुए।
(vi) अकाल और गरीबी: अकाल की नियमित पुनरावृत्ति केवल खाद्यान्न की कमी के कारण ही नहीं होती थी, बल्कि यह औपनिवेशिक नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम थी। 1850 से 1900 के बीच लगभग 2.8 करोड़ लोग अकाल में मारे गए थे।
(vii) दमनकारी उपाय: सरकार ने 1878 के भारतीय शस्त्र अधिनियम जैसी दमनकारी नीतियां लागू की। इसके द्वारा भारतीयों को बिना लाइसेंस के कोई भी हथियार रखने पर रोक लगा दी गई। 1878 के वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आलोचना को दबाने के उद्देश्य से स्थानीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाकर स्थानीय भाषाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम कर दिया। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A जैसे कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल किया गया।
(viii) जन शिक्षा की उपेक्षा: इसने व्यापक निरक्षरता (1911 में 84% और 1921 में 92%) को उत्पन्न किया। इसके कारण केवल कुछ ही शिक्षित हुए लोगों तथा अशिक्षित जन सामान्य के बीच एक व्यापक भाषाई और सांस्कृतिक खाई उत्पन्न हो गई।
निष्कर्ष:
भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा कुछ सकारात्मक कदम भी उठाए गए थे। उदाहरण के लिए, उन्होंने सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथाओं के उन्मूलन हेतु कानून लागू किए। साथ ही, उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रयास किया, भारतीय लोगों को आधुनिक जीवन शैली से परिचय कराया और भारत में तकनीकी क्रांति उत्पन्न की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने रेलवे, टेलीग्राफ आदि की शुरुआत की।
हालांकि इनकी शुरुआत उन्होंने अपने औपनिवेशिक हितों की पूर्ति के लिए थी, लेकिन फिर भी इन्होंने भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन सबके बावजूद, भारत में ब्रिटिश शासन की मूल प्रकृति शोषक ही बनी रही।