प्रश्न: भारतीय स्थानीय साहित्य क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षाओं और इतिहास का प्रतिबिंब है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
Indian vernacular literature is a reflection of regional identities, aspirations, and histories. Elaborate with suitable examples.
दृष्टिकोण: (i) भारतीय स्थानीय साहित्य के बारे में वर्णन करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए। (ii) भारतीय स्थानीय साहित्य में क्षेत्रीय पहचानों, आकांक्षाओं और इतिहास के प्रतिबिंब को उदाहरण के साथ विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। (iii) तदनुसार उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
भारत में समृद्ध भाषाई विविधता पाई जाती है। यहां स्थानीय भाषाओं के साहित्य का विशाल भंडार मौजूद है। विभिन्न क्षेत्रों का यह साहित्य अपने संबंधित जन-समुदाय की पहचान, आकांक्षाओं और इतिहास को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करता है।
क्षेत्रीय पहचान का प्रतिबिंबः
(i) विविध सांस्कृतिक प्रथाएं: भारत विभिन्न संस्कृतियों है। इसके क्षेत्रीय उत्सबों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं का मिश्रण है। को साहित्य में स्पष्ट रूप से चित्रित किया गया है। साहित्य लोगों के दैनिक जीवन, उत्सवों और परंपराओं की झलक प्रस्तुत करता है।
उदाहरणः प्राचीन मणिपुरी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों स्वरूपों में अनुष्ठानिक सूक्तों, ब्रह्माण्ड विज्ञान और इतिहास को लोक कथाओं के रूप में शामिल किया गया है। इन रचनाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण जैसे कि पैंथोइबी खोंगुल, नुमित कप्पा, औगरी, खन्चो, साना लामोक आज भी अस्तित्व में हैं।
(ii) बोलियां और भाषाई विशेषताएं: स्थानीय साहित्य में प्रयुक्त शब्द, वाक्यांश और मुहावरे हमें उस क्षेत्र की विशिष्ट भाषाई संरचना के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अहोमों की चीनी-तिब्बती बोली ने असमिया गद्य शैली को अत्यधिक प्रभावित किया है। साथ ही, इसने लोगों को एक सांस्कृतिक पहचान भी प्रदान की है।
आकांक्षाओं का प्रतिबिंबः
(i) स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु अभिव्यक्तिः जैसे-जैसे विभिन्न समुदायों ने विदेशी शासन के विरुद्ध विद्रोह आरंभ किया, स्थानीय भाषाओं में देशभक्तिपूर्ण लेखन का प्रसार होने लगा।
बांग्ला में रंगलाल, उर्दू भाषा में मिर्जा गालिब और हिन्दी भाषा में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने स्वयं को उस युग के देशभक्तिपूर्ण साहित्य के अग्रणी रचयिता के रूप में प्रस्तुत किया।
(ii) भक्ति की ओर झुकावः अनेक साहित्यिक रचनाओं में क्षेत्र विशेष के धार्मिक या भक्तिवादी झुकाव को प्रतिबिंबित किया गया है।
उदाहरण: तमिल भाषा में रचित कंबन की रामायण, असमिया भाषा में माधव कंदलि की रचनाएं आदि भक्तिवादी रचनाओं ने साहित्य में अपनी जगह बनाई है।
(iii) प्रगति की इच्छाः स्वतंत्रता के बाद, असमिया साहित्य द्वारा चुनौतियों के साथ-साथ समृद्धि के लिए राज्य की आकांक्षाओं को व्यक्त किया गया।
उदाहरण: होमेन बोर्गोहिन की रचनाएं असम की सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक चिंताओं को गहराई से उजागर करती हैं।
इतिहास का प्रतिबिंबः
(i) ऐतिहासिक वृत्तांतः कई भाषाओं में रचित विभिन्न साहित्यों में अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का संदर्भ प्राप्त होता है।
उदाहरण: शिवाजी और उनके पुत्र की जीवनी पर आधारित मराठी भाषा में रचित अणुभारत या शिवभारत; फारसी भाषा में अनुवादित जैन खान की तुजुक-ए-बाबरी और मुन्ना लाल की तारिख-ए-शाह आलम।
(ii) सामाजिक परिस्थितिः स्थानीय साहित्य अलग-अलग युग की परिस्थितियों के साथ-साथ समाज में हुए परिवर्तनों को भी प्रतिबिंबित करता है।
उदाहरण: (a) 16वीं शताब्दी के आरंभ में, गुजरात में वैष्णव भक्ति आंदोलन प्रमुख सामाजिक विषय बन गया था। इसलिए, इस काल के अधिकांश गुजराती साहित्यों का संबंध भक्ति परंपरा से है।
(b) वृंदावन दास द्वारा चैतन्य भागवत की रचना संभवतः संत श्री चैतन्य की मृत्यु के एक दशक के भीतर की गई थी। साथ ही इसे उनके काल की सामाजिक दशाओं का सबसे प्रमाणिक विवरण माना जाता है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, भारतीय स्थानीय साहित्य मात्र मनोरंजन या कलात्मक अभिव्यक्ति का एक ही रूप नहीं है, बल्कि यह इस विशाल राष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों की आकांक्षाओं, पहचान और इतिहास को प्रतिबिंबित करने वाला एक दर्पण भी है।