प्रश्न: भारत के स्वतंत्रता संग्राम को समाज के विभिन्न वर्गों के प्रयासों और बलिदानों के माध्यम से जीता गया था। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष में आदिवासी महिलाओं द्वारा किए गए योगदानों की विवेचना कीजिए।
Que. India’s war of independence was won by the efforts and sacrifices of different sections of the society. In this context, discuss the contributions made by tribal women in the national freedom struggle.
दृष्टिकोण: (i) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के संबंध में विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए। (ii) इस संबंध में आदिवासी महिला नेतृत्वकर्ताओं द्वारा किए गए योगदान की उदाहरण सहित विवेचना कीजिए। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
स्वतंत्रता के लिए भारत का संघर्ष एक सामूहिक प्रयास था जिसमें आदिवासियों जैसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों सहित समाज के विभिन्न वर्गों का बलिदान और योगदान शामिल था। ऐतिहासिक वृत्तांतों में अक्सर अनदेखी की गई आदिवासी महिलाओं ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने क्षेत्रों में शोषण का विरोध करने से लेकर व्यापक राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने तक, उनके योगदान को साहस, लचीलापन और समुदाय की गहरी भावना द्वारा चिह्नित किया गया था।
आदिवासी महिला नेतृत्वकर्ताओं ने स्वतंत्रता संग्राम को आकार देने और औपनिवेशिक सत्ता से अपनी भूमिओं की रक्षा करने में व्यापक योगदान दिया था। इस संबंध में विभिन्न योगदानकर्ताओं में से कुछ निम्नलिखित हैं:
(i) प्रारंभिक विद्रोहों में भूमिका: प्रारंभिक उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों में आदिवासी महिलाएँ सबसे आगे थीं। 19वीं सदी में, संथाल और भील समुदायों की महिलाएं ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ विद्रोह में शामिल हुईं, जिन्होंने उनके पारंपरिक भूमि अधिकारों और आजीविका को बाधित किया। उन्होंने सक्रिय रूप से अपने पुरुष समकक्षों का समर्थन किया और अक्सर अपनी पहल का नेतृत्व किया।
(ii) सिदो और कान्हू का विद्रोह (संथाल हूल) 1855-56: जमींदारों और ब्रिटिश अधिकारियों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ संथाल विद्रोह में आदिवासी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी देखी गई। हालाँकि सिदो और कान्हू प्रमुख पुरुष नेता थे, महिलाओं ने सैन्य सहायता प्रदान करने के साथ-साथ सशस्त्र संघर्ष में भाग लेने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(iii) मुंडा विद्रोह में भागीदारी (1899-1900): बिरसा मुंडा के नेतृत्व में, आदिवासी महिलाओं ने मुंडाओं की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर अत्याचार करने वाली ब्रिटिश नीतियों को चुनौती देने के लिए पुरुषों के साथ लड़ाई लड़ी। कई महिलाओं को गंभीर प्रतिशोध का सामना करना पड़ा, और उनकी भागीदारी उनकी पहचान, भूमि और सम्मान की रक्षा के लिए उनकी लड़ाई का प्रतीक थी।
(iv) ताना भगत आंदोलन (1914-1920): छोटानागपुर में ओराँव समुदाय ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण विद्रोह का नेतृत्व किया। पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी इस गांधीवादी शैली के अहिंसक आंदोलन का हिस्सा बनीं, जिसने अंग्रेजों द्वारा लगाए गए जबरन श्रम (बेथ-बेगारी) और अनुचित कराधान नीतियों का विरोध किया।
(v) अल्लूरी सीताराम राजू का रम्पा विद्रोह (1922-1924): ब्रिटिश वन कानूनों के खिलाफ रम्पा विद्रोह में आंध्र प्रदेश में कई आदिवासी महिलाओं की भागीदारी देखी गई। उन्होंने विद्रोहियों को भोजन, खुफिया जानकारी और आश्रय की आपूर्ति करके अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में गुरिल्ला युद्ध का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(vi) वन सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन: गांधीजी के जन आंदोलनों में आदिवासी महिलाओं ने भी भूमिका निभाई। भारत के विभिन्न हिस्सों में वन सत्याग्रह के दौरान, उन्होंने औपनिवेशिक वन नीतियों का विरोध किया, जिसने वन संसाधनों तक उनकी पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया था। इन आंदोलनों में भाग लेने के कारण कई आदिवासी महिलाओं को क्रूर दमन, कारावास और यातना का सामना करना पड़ा।
(vii) नागालैंड की रानी गाइदिन्ल्यू का योगदान: नागा आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता रानी गाइदिन्ल्यू ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का आयोजन किया। 16 साल की उम्र में गिरफ्तार होने के बाद उन्होंने 14 साल जेल में बिताए। उनके नेतृत्व और अटूट भावना ने आदिवासी पुरुषों और महिलाओं दोनों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
(viii) पूर्वोत्तर की क्रांतिकारी महिलाएँ: पूर्वोत्तर की आदिवासी महिलाओं, विशेषकर नागाओं, खासी और मिज़ोस ने औपनिवेशिक नीतियों का विरोध किया, जो उनके पारंपरिक अधिकारों और शासन में हस्तक्षेप करने की कोशिश करती थीं। मणिपुर में, महिलाओं ने 1900 के दशक की शुरुआत में ब्रिटिश शोषण के खिलाफ नुपी लैन या “महिला युद्ध” में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष:
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी महिलाओं का योगदान उनके लचीलेपन, नेतृत्व और न्याय की भावना को उजागर करता है। हिंसक और अहिंसक दोनों तरह के विभिन्न विद्रोहों में उनकी भागीदारी, औपनिवेशिक शासन को चुनौती देने में उनकी अभिन्न भूमिका को दर्शाती है। मुख्यधारा के ऐतिहासिक आख्यानों में अक्सर हाशिए पर रहने के बावजूद, इन महिलाओं के बलिदान और बहादुरी को भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। उनका संघर्ष सिर्फ उपनिवेशवाद के खिलाफ नहीं था, बल्कि अपनी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के लिए भी था, जो ब्रिटिश नीतियों से खतरे में थी। इस प्रकार, वे भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई की कहानी में एक आवश्यक अध्याय बनाते हैं।