UPSC GS (Pre & Mains) Telegram Channel Join Now
UPSC History Optional Telegram Channel Join Now
5/5 - (10 votes)

प्रश्न: यह तर्क दिया जाता है कि गणित और खगोल विज्ञान प्राचीन भारत में बौद्धिक विकास के महत्वपूर्ण अंग थे। इस संदर्भ में, इन क्षेत्रों में प्राचीन भारत के प्रमुख योगदानों पर प्रकाश डालिए।

Que. It is argued that mathematics and astronomy were an important part of intellectual development in ancient India. In this context, highlight the major contributions of ancient India to these areas.

दृष्टिकोण:

(i) प्राचीन भारत में विज्ञान के उद्भव और विकास का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए विवेचना कीजिए कि किस प्रकार प्राचीन भारत में गणित और खगोल विज्ञान बौद्धिक विकास के महत्वपूर्ण अंग थे।

(ii) गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन भारत के प्रमुख योगदान को स्पष्ट कीजिए।

(iii) उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर उत्तर का समापन कीजिए।

परिचय:

बीजगणित और अल्गोरिद्म (algorithm), शून्य की अवधारणा, शल्यचिकित्सा की तकनीक, परमाणु और सापेक्षता की अवधारणा, चिकित्सा की आयुर्वेदिक प्रणाली जैसी विभिन्न अवधारणाओं के साथ प्राचीन भारत ने विज्ञान के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई।

गणित और खगोल विज्ञान जैसे विषयों का विकास प्राचीन भारत में बौद्धिक विकास का एक महत्वपूर्ण अंग था। यह गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से छात्रों की शिक्षा का एक महत्वपूर्ण भाग था तथा इसे तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया था।

गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारत का योगदानः

(i) बौधायन ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गणित पर प्रारंभिक ग्रंथ शुल्वसूत्र की रचना की। इसमें पाई तथा पाइथागोरस के प्रमेय से काफी हद तक मिलती-जुलती कुछ अवधारणाओं का भी उल्लेख है। वर्तमान में पाई का वस्तुओं के क्षेत्रफल और परिधि की गणना करने के लिए उपयोग किया जाता है।

(ii) पिंगल (100 ईसा पूर्व) ने दशमलव अंकों में परिवर्तनीय द्विआधारी परिगणना की प्रणाली विकसित की। इन्होने इसका वर्णन छन्दःशास्त्र नामक अपनी कृति में किया है।

(iii) आपस्तम्ब द्वारा द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में न्यून कोण, अधिक कोण और समकोण सहित व्यावहारिक ज्यामिति की अवधारणाएं प्रचलित की गईं।

(iv) आर्यभट्ट ने लगभग 499 ईस्वी में आर्यभट्टीय की रचना की। इसमें वर्णमाला के माध्यम से बड़ी दशमलव संख्या को निरूपित करने की विधि और संख्या सिद्धांत, ज्यामिति, त्रिकोणमिति, बीजगणित का उल्लेख किया गया है।

(v) 7वीं शताब्दी ईस्वी में ब्रह्मगुप्त ने अपनी पुस्तक ब्रह्मस्फुट सिद्धांत में पहली बार संख्या के रूप में ‘शून्य’ का उल्लेख किया। इस पुस्तक के माध्यम से ही अरबों को भारतीय गणित का ज्ञान हुआ।

(vi) 9वीं शताब्दी ईस्वी में महावीराचार्य ने गणित सार संग्रह की रचना की। यह वर्तमान स्वरूप में अंकगणित पर लिखी गयी प्रथम पाठ्यपुस्तक थी। उन्होंने दी गई संख्याओं के लघुत्तम समापवर्त्य (LCM) को हल करने की वर्तमान पद्धति का भी वर्णन किया था।

(vii) भास्कराचार्य 12वीं शताब्दी ईस्वी के एक अग्रणी गणितज्ञ थे। उनकी पुस्तक सिद्धान्त शिरोमणि चार खंडों में विभाजित हैः लीलावती में अंकगणित से सम्बंधित विषयों, बीजगणित में बीजगणित से सम्बंधित विषयों, गोलाध्याय में गोले से संबंधित विषयों और ग्रहगणित में ग्रहों के गणित का अध्ययन किया गया है। 19वीं शताब्दी में जेम्स टेलर ने अंकगणित पर भास्कराचार्य की रचना अर्थात लीलावती का अनुवाद किया और विश्व को इससे अवगत कराया।

खगोल विज्ञान में प्राचीन भारत का योगदानः

(i) खगोल विज्ञान का प्रारंभिक संदर्भ ऋग्वेद में पाया जाता है, जिसका काल 2000 ईसा पूर्व माना जाता है। कार्ल सेगन जैसे वैज्ञानिकों के अनुसार अरबों वर्षों की खगोलीय अवधि का प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णन किया गया था, जो आधुनिक वैज्ञानिक अनुमानों के समान हैं।

(ii) अपनी पुस्तक में आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है।

(iii) आर्यभट्टीय का ज्योतिष भाग भी खगोलीय परिभाषाओं, ग्रहों की वास्तविक स्थिति निर्धारित करने की विधियों, सूर्य एवं चंद्रमा की गति और ग्रहण की गणना से संबंधित है।

(iv) आर्यभट्ट के सिद्धांत ज्योतिष के रूढ़िवादी सिद्धांतों से स्पष्टतया भिन्न थे और आस्था के स्थान पर वैज्ञानिक व्याख्याओं पर बल देते थे।

(v) वराहमिहिर ने पंच सिद्धान्तिका और बृहत-संहिता नामक पुस्तकों की रचना की। उन्होंने प्रतिपादित किया कि चंद्रमा और ग्रह अपने स्वयं के प्रकाश से नहीं, बल्कि सूर्य के प्रकाश से प्रकाशमान हैं।

निष्कर्ष:

खगोल विज्ञान और गणित जैसे विज्ञानों में प्राचीन भारत के योगदान का इसी तथ्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि सीरियाई खगोलशास्त्री-भिक्षु सेवेरुस सेबोख्त (Severus Sevokht) ने 660 ईस्वी में खगोल विज्ञान में सूक्ष्म भारतीय खोजों का वर्णन किया था जो यूनानियों और बेबीलोन वासियों की तुलना में कहीं अधिक बेहतर थीं।

"www.upscstudymaterial.in" एक अनुभव आधारित पहल है जिसे राजेन्द्र मोहविया सर ने UPSC CSE की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शन देने के उद्देश्य से शुरू किया है। यह पहल विद्यार्थियों की समझ और विश्लेषणात्मक कौशल को बढ़ाने के लिए विभिन्न कोर्स प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, सामान्य अध्ययन और इतिहास वैकल्पिक विषय से संबंधित टॉपिक वाइज मटेरियल, विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों का मॉडल उत्तर, प्रीलिम्स और मेन्स टेस्ट सीरीज़, दैनिक उत्तर लेखन, मेंटरशिप, करंट अफेयर्स आदि, ताकि आप अपना IAS बनने का सपना साकार कर सकें।

Leave a Comment

Translate »
www.upscstudymaterial.in
1
Hello Student
Hello 👋
Can we help you?
Call Now Button