प्रश्न: भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित करने और भारत में सामाजिक समानता के सिद्धांतों के प्रचार में श्री रामानुजाचार्य के योगदान का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
Que. Provide an account of the contribution of Sri Ramanujacharya in reviving the Bhakti movement and propagating the tenets of social equality in India.
दृष्टिकोण: (i) परिचय: श्री रामानुजाचार्य के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिए। (ii) मुख्य भाग: भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित करने में उनके योगदान पर प्रकाश डालिए। साथ ही, सामाजिक समानता के समर्थक के रूप में उनके योगदान की चर्चा कीजिए। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
11वीं सदी के एक प्रभावशाली दार्शनिक और धर्मशास्त्री श्री रामानुजाचार्य ने भारत में भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति पर जोर दिया, कठोर जाति पदानुक्रम को चुनौती दी और सामाजिक समानता की वकालत की, इस प्रकार एक अधिक समावेशी आध्यात्मिक और सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा दिया।
भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित करने में उनके योगदान:
(i) भक्ति या ईश्वर के प्रति निष्ठा को लोकप्रिय बनायाः रामानुज अलवार संतों (विष्णु उपासक) से अत्यधिक प्रभावित थे। उनके अनुसार मोक्ष प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ साधन भगवान विष्णु की परम भक्ति है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मंदिरों में सभी अवसरों पर और घरों में भी दैनिक पूजा के समय अलवार भक्ति गीतों को लोकप्रिय बनाकर लोगों के मन में भक्ति भाव जगाने का प्रयास किया।
(ii) अन्य भक्ति विचारधाराओं को प्रेरित कियाः उनके उपदेशों ने अन्य भक्ति विचारधाराओं को प्रेरित किया। वे अन्नामचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के प्रेरणा स्रोत माने जाते हैं।
(iii) विशिष्टाद्वैत सिद्धांत का प्रतिपादन कियाः उनके अनुसार, परिमित अद्वैतवाद अर्थात सगुण ब्रह्म ही यथार्थ है जो अनगिनत शुभ गुणों से युक्त एक व्यक्तिगत अस्तित्व है। यह दर्शन श्री वैष्णववाद का एक अभिन्न अंग है जो कहता है कि श्रीमन नारायण ‘परतत्व’ अर्थात परम सत्य हैं।
(iv) पूजन पद्धति का मानकीकरण कियाः रामानुज को संपूर्ण भारत में मंदिरों में किए जाने वाले अनुष्ठानों की सही पद्धतियों को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। इन मंदिरों में तिरुमाला और श्रीरंगम सबसे प्रसिद्ध हैं।
(v) वेदों को जनसामान्य तक पहुंचायाः रामानुजाचार्य ने वैदिक शास्त्रों पर अनेक भाष्यों की रचना कर वैदिक साहित्य के खजाने को जन सामान्य तक पहुंचा दिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने श्री भाष्य, गीता-भाष्य और वेदार्थ संग्रह सहित नौ ग्रंथों की रचना की जिन्हें नवरत्न के रूप में जाना जाता है।
सामाजिक समानता के प्रचारक के रूप में श्री रामानुजाचार्य का योगदानः
(i) वर्ण व्यवस्था की निंदा कीः श्री रामानुजाचार्य वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे और उन्होंने मंदिरों को लोगों की जाति या समाज में उनकी प्रस्थिति पर ध्यान न देते हुए सभी के लिए अपने दरवाजे खोलने के लिए प्रोत्साहित किया।
(ii) समानता और सामाजिक न्याय के लिए अभियान चलायाः उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, लैंगिक, शैक्षणिक और आर्थिक भेदभाव से लाखों लोगों को मुक्त करने के लिए अथक प्रयास किया। उनका विश्वास था कि हर व्यक्ति एक समान है, चाहे उसका लिंग, जाति, वर्ण या पंथ कुछ भी हो। उन्होंने सामाजिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों को गले से लगाया एवं इस व्यवस्था की निंदा करते हुए राज दरबार से उनके साथ समान व्यवहार करने को कहा।
(iii) विश्व बंधुत्व: रामानुजाचार्य ने समानता और समावेशिता पर जोर देते हुए “वसुधैव कुटुम्बकम” (विश्व एक परिवार है) का प्रचार किया। उनकी शिक्षाओं ने भक्ति जैसे आंदोलनों और महात्मा गांधी जैसे सुधारकों को प्रभावित किया, जिन्होंने जाति, धर्म और सामाजिक सीमाओं से परे लोगों को एकजुट करने के लिए इस विचार को अपनाया।
(iv) शिक्षा पर बल दियाः उन्होंने शिक्षा को इससे वंचित लोगों तक पहुंचाया। वे कई दशकों तक पूरे भारत में भ्रमण करते रहे और सामाजिक समानता एवं सार्वभौमिक भाईचारे के अपने विचारों को मंदिरों के मंच से प्रचारित किया।
निष्कर्ष:
रामानुजाचार्य के अथक प्रयासों के कारण भक्ति पूरे देश में फैल गई और बाद में अनेक आध्यात्मिक गुरुओं ने उनके पदचिन्हों पर चलते हुए लोगों के मन में ईश्वरीय प्रेम एवं भक्ति का प्रसार किया। इस प्रकार रामानुज के जीवन ने वास्तव में भक्ति का पुनरुत्थान देखा एवं सामाजिक न्याय तथा भारत की एकता और विविधता के सिद्धांतों को बहुत हद तक कायम रखा।