प्रश्न: आर्थिक महामंदी (ग्रेट डिप्रेशन) विभिन्न कारकों के संयोजन का परिणाम थी तथा दुनिया के एक हिस्से में आए इस संकट के आघातों का प्रसार शीघ्र ही भारत सहित अन्य हिस्सों में हो गया था। चर्चा कीजिए।
Que. The Economic Great Depression was caused by a combination of factors and the tremors of the crisis in one part of the world were quickly relayed to the other parts, including India. Discuss.
दृष्टिकोण: (i) आर्थिक महामंदी (ग्रेट डिप्रेशन) के बारे में लिखकर भूमिका दीजिए। (ii) इसके लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए। (iii) भारत सहित, अन्य हिस्सों में महामंदी के प्रभाव पर चर्चा कीजिए। (iv) संक्षेप में उत्तर समाप्त कीजिए। |
परिचय:
आर्थिक महामंदी 1929 के आस-पास शुरू हुई और 1930 के दशक के मध्य तक जारी रही। इस अवधि के दौरान विश्व के अधिकतर भागों में उत्पादन, रोजगार, आय और व्यापार में विनाशकारी गिरावट का अनुभव किया गया। मंदी का सटीक समय और प्रभाव अलग-अलग देशों में भिन्न-भिन्न था।
महामंदी के लिए उत्तरदायी कारकः
(i) 1929 के शेयर बाजार में गिरावटः अक्टूबर 1929 में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में शेयर बाजार में गिरावट का प्रमुख कारण प्रभावी बाजार विनियमन के अभाव में असीमित अटकलें थीं। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका के आर्थिक इतिहास में सबसे बड़ा आर्थिक संकट आया।
(ii) बैंकिंग पैनिक और मौद्रिक संकुचनः अमेरिकी विदेशी ऋणदाताओं के बीच पैनिक की स्थिति के कारण अमेरिकी ऋणों की निकासी ने विश्व के अधिकतर भागों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित किया। उदाहरण के लिए: यह यूरोप में कुछ प्रमुख बैंकों की विफलता और ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग जैसी मुद्राओं के पतन का कारण बना।
(iii) अधिक आपूर्ति और अति उत्पादन की समस्याएं: कृषि संबंधी वस्तुओं का अति उत्पादन एक बड़ी समस्या बना रहा है। इसकी वजह से कृषि उत्पादों को कीमतों में गिरावट आई है। जैसे-जैसे कीमतों में गिरावट हुई और कृषि आय में कमी आई, किसानों ने उत्पादन का विस्तार करने और अपनी समग्र आय को बनाए रखने के लिए उपज की एक बड़ी मात्रा को बाजार में लाने का प्रयास किया। इससे बाजार में उपज की अधिकता हो गई, अतः कीमतों में और भी भारी गिरावट देखी गई।
(iv) निम्न मांग और उच्च बेरोजगारी: आर्थिक मंदी के दौरान उपभोक्ता खर्च करना बंद कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप कंपनियों को उत्पादन में कटौती करने के लिए विवश होना पड़ता है। उत्पादन कम होने के कारण कंपनियां लोगों की छंटनी करना शुरू कर देती है। इसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी दर बढ़ जाती है।
(v) अंतर्राष्ट्रीय उधार और प्रशुल्क में कमीः 1920 के दशक के उत्तरार्ध में अमेरिकी बैंकों द्वारा बाह्य देशों को दिए जाने वाले ऋणों में आंशिक रूप से गिरावट आई थी। इस गिरावट का मुख्य कारण अपेक्षाकृत उच्च अमेरिकी ब्याज दरें थीं। इसने कुछ उधारकर्ता देशों, विशेष रूप से जर्मनी, अर्जेंटीना और ब्राजील में संकुचनकारी प्रभावों में योगदान दिया।
इन कारकों से प्रेरित होकर व्यक्तिगत आय, कर राजस्व में गिरावट और बेरोजगारी में वृद्धि के साथ अमीर और गरीब दोनों देशों में अत्यधिक हानिकारक प्रभाव देखा गया। बहुत कम समय में वैश्विक उत्पादन और जीवन स्तर में तेजी से गिरावट आई।
1930 के दशक की शुरुआत में औद्योगिक देशों में एक-चौथाई श्रमिकों को काम नहीं मिल पा रहा था। इतना ही नहीं, विश्व के किसी एक हिस्से में संकट की आहट शीघ्र ही भारत में भी फैल गई जिसका विवरण नीचे दिया गया है:
(i) व्यापार पर प्रभावः अवमंदी ने भारतीय व्यापार को तुरंत प्रभावित किया। 1928 से 1934 के बीच भारत का निर्यात और आयात लगभग आधा हो गया। जैसे ही अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में गिरावट आई वैसे ही भारत में भी कीमतों में गिरावट आने लगी।
(ii) किसानों पर प्रभावः इस महामंदी का प्रभाव शहरी निवासियों की तुलना में खेतिहर लोगों और किसानों पर अधिक पड़ा। उन्हें अधिक नुकसान हुआ। हालांकि कृषि कीमतों में तेजी से गिरावट आई लेकिन औपनिवेशिक सरकार ने राजस्व मांगों को कम करने से इंकार कर दिया। जो किसान विश्व बाजार के लिए उत्पादन करते थे, वे इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
(iii) कर्ज में वृद्धिः संपूर्ण भारत में किसानों की कर्जदारी में वृद्धि हुई। उन्होंने अपनी बचत का उपयोग करना पड़ा और अपनी भूमि को गिरवी रखना पड़ा। साथ ही, उन्हें अपने खचों को पूरा करने के लिए आभूषण और कीमती धातुओं तक को बेचना पड़ा।
(iv) शहरी वर्ग पर प्रभावः ये अवमंदी शहरी भारत के लिए कम गंभीर साबित हुई। गिरती कीमतों के कारण निश्चित आय वाले लोग कम प्रभावित हुए। जैसे- शहर में रहने वाले जमींदार, जिन्हें किराया मिलता था और मध्यम वर्ग के वेतनभोगी कर्मचारियों की स्थिति बेहतर थी। यह इसलिए क्योंकि उस समय हर चीज की कीमत में खासा कमी/ गिरावट हो गई थी।
निष्कर्ष:
सामान्यतः, देशों ने मंदी से उबरने के लिए सोने के मानक को अपनाना बंद कर दिया या अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन किया या अन्यथा अपनी मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि की। राजकोषीय विस्तार, नई डील जॉब और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के रूप में और द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के दौरान रक्षा खर्च में वृद्धि, संभवतः अवमंदी से आर्थिक सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।