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प्रश्न: पाल साम्राज्य को बौद्ध कला के विशिष्ट रूप के लिए जाना जाता है। इस संदर्भ में, कला के क्षेत्र में पाल वंश के योगदानों पर चर्चा कीजिए।

Que. The Pala Empire is known for a distinctive form of Buddhist art. In this context, discuss the contributions made by the Pala dynasty towards art. 

दृष्टिकोण:

(i) पाल वंश के बारे में संक्षिप्त विवरण देते हुए परिचय दीजिए और बौद्ध धर्म के साथ उनके संबंधों को वर्णित करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।

(ii) कला के क्षेत्र में पाल साम्राज्य के योगदानों पर चर्चा कीजिए।

(iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

परिचय:

पाल राजवंश ने 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक लगभग 400 वर्षों तक बंगाल और बिहार के क्षेत्रों पर शासन किया। पाल शासक बौद्ध धर्म के प्रबल समर्थक एवं अनुयायी थे। पाल वंश का समय बौद्ध मूर्तिकला, चित्रकला, टेराकोटा कला और वास्तुकला के विशिष्ट रूपों के लिए जाना जाता है। इस अवधि के दौरान नालंदा और विक्रमशिला जैसे बौद्ध शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्रों का विकास हुआ था।

पाल शासन के दौरान, कला के विशिष्ट रूपों में अभूतपूर्व विकास देखा गया, जैसे किः

(i) टेराकोटा कलाः पाल काल के समय सजावट के लिए टेराकोटा का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता था। उदाहरण के लिए, सोमपुर महाविहार या पहाड़पुर में स्थित विशाल बौद्ध मठ की पूरी परिधि के चारों ओर टेराकोटा की पट्टिकाएं (Plaques) लगी हुई हैं। पाल काल के अन्य अभूतपूर्व योगदानों में तेल्हारा (Telhara) से उपवास करते हुए बुद्ध की एक लघु टेराकोटा मूर्ति शामिल है।

(ii) मूर्तिकलाः इस अवधि के दौरान कला को तकनीकी संपूर्णता मिली। छरहरी और मनोहारी आकृतियां, पर्याप्त आभूषण तथा परंपरागत सजावट पाल शैली की विशेषताएं हैं। इस अवधि के दौरान बुद्ध और हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई गईं। इसके प्रमुख उदाहरणों में नालंदा से अवलोकितेश्वर की मूर्तियां और ‘भूमिस्पर्श मुद्रा’ में बैठे बुद्ध शामिल हैं। इस अवधि में कांस्य ढलाई कला में भी उच्च स्तर की कुशलता पाई गई।

(iii) चित्रकारी: भारत में लघु चित्रकला के सबसे प्राचीन उदाहरण पाल वंश के अधीन निष्पादित बौद्ध धर्म के धार्मिक ग्रंथों के चित्रण के रूप में मौजूद हैं। इस अवधि के दौरान बौद्ध विषयों और वज्रयान बौद्ध देवताओं की मनोहारी आकृतियों को ताड़ के पत्तों पर उकेरा गया था; जैसे- अष्टसाहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता। पाल लघु चित्रों के निम्नलिखित प्रसिद्ध केंद्र थेः नालंदा, ओदंतपुरी, विक्रमशिला और सोमपुर।

(iv) शिक्षा केंद्रः नालंदा और विक्रमशिला बौद्ध कला सीखने के प्रसिद्ध केंद्र थे। ध्यातव्य है कि देवपाल के अधीन नालंदा ने काफी ख्याति प्राप्त की और विक्रमशिला की स्थापना धर्मपाल द्वारा की गई थी। इन स्थानों पर पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया के छात्र और तीर्थयात्री शिक्षा एवं धार्मिक उपदेश के लिए आते थे। इन स्थानों से जाते समय वे पाल बौद्ध कला के नमूने अपने देश ले गए। इससे निम्नलिखित स्थानों में पाल शैली के प्रचार-प्रसार में मदद मिलीः नेपाल, तिब्बत, बर्मा (वर्तमान म्यांमार), श्रीलंका और जावा आदि।

(v) स्थापत्य कलाः पाल शासकों ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विहारों का निर्माण करवाया जैसे- पहाड़पुर में सोमपुर महाविहार। महाबोधि मंदिर में ताखों में कई मूर्तियां आठवीं शताब्दी के पाल काल की हैं। इसके अलावा, बर्धमान जिले में नौवीं शताब्दी के सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के शीर्ष पर एक ऊंचे घुमावदार शिखर के साथ एक बड़ा अमलक स्थापित किया गया है। यह प्रारंभिक पाल शैली का उदाहरण है।

निष्कर्ष:

पाल साम्राज्य ने कला, विशेषकर बौद्ध कला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मूर्तिकला और चित्रकला की उनकी विशिष्ट शैली न केवल भारत तक ही सीमित थी बल्कि नेपाल एवं दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे पड़ोसी देशों में भी फैली हुई थी।

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