प्रश्न: कालिदास की रचनाएं गुप्त साहित्य का सर्वोच्च रत्न थीं। चर्चा कीजिए।
Que. The work of Kalidasa was the crowning jewel of Gupta literature. Discuss.
दृष्टिकोणः (i) गुप्त काल में साहित्य के संदर्भ को लिखते हुए उत्तर आरंभ कीजिए। (ii) कारण सहित बताइए कि कालिदास की रचनाओं को गुप्त साहिल का सर्वोच्च रत्न क्यों माना जाता है। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
गुप्त काल को कला और साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। इस काल के सभी कवियों में सबसे महान कवि कालिदास थे। उन्हें पांचवी शताब्दी ईस्वी में चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में संरक्षण प्राप्त था।
कालिदास, जिन्हें अक्सर भारत का शेक्सपियर कहा जाता है, गुप्त काल की साहित्यिक प्रतिभा के प्रतीक थे। उनकी रचनाएँ, जो अपनी काव्यात्मक सुंदरता और गहन विषयों के लिए जानी जाती हैं, गुप्त साहित्य के मुकुट रत्न के रूप में खड़ी हैं, जो उस युग की सांस्कृतिक पराकाष्ठा और बौद्धिक परिष्कार को दर्शाती हैं।
कालिदास की रचनाओं को निम्नलिखित कारणों से गुप्त साहित्य का मुकुट रत्न माना जाता है:
(i) उनकी रचनाओं में विविधता है: कालिदास शास्त्रीय परंपरा के उन लेखकों में से एक हैं जिन्होंने नाटकों के साथ-साथ कविताओं की भी रचना की। अधिकांश शास्त्रीय लेखक या तो नाटक में या तो कविता में विशिष्ट थे।
उदाहरण के लिए: कालिदास मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् आदि नाटक और मेघदूतम्, ऋतुसंहारम् आदि कविताएं, दोनों के रचनाकार रहे हैं।
(ii) उनकी रचनाएं गुप्त साम्राज्य की संस्कृति को प्रतिबिंबित करती हैं: कालिदास अपनी रचनाओं में रूढ़िवाद और सद्भाव के आदर्शों के साथ-साथ अपनी लेखनी की व्यावहारिकता में नवाचार, गुप्त सम्राटों के आदर्शों और व्यवहार को बारीकी से दर्शाते हैं। उनका धर्म भी अपने उदासीन और रचनात्मक, दोनों पहलुओं में गुप्त काल के आदर्शों से निकटता से संबंधित है।
उदाहरण के लिए: कालिदास ने अपनी रचना कुमारसंभवम् में गुप्त साम्राज्य के व्यापक रूप से प्रचलित धर्म को दर्शाया है। इसके साथ ही, भगवान शिव और माता पार्वती के प्रणय निवेदन के बारे में वर्णन किया है।
(iii) उनकी लेखन शैली विशिष्ट हैः उनकी लेखन शैली शुद्ध, सरल, वास्तविक और संक्षिप्त है। स्वाभाविक सहजता और भाषा का सरल प्रवाह, उनकी रचनाओं की मुख्य पहचान है, जो उन्हें संस्कृत साहित्य के अन्य कवियों से अलग बनाती है।
(iv) उनकी रचनाओं में गहन अर्थ होता हैः उनकी रचनाएं अभिधा की बाजय लक्षणा शब्द शक्ति से परिपूर्ण हैं। दूसरे शब्दों में, उनकी रचनाओं में सीधा अर्थ निकलने के बजाय एक सांकेतिक अर्थ निकलता है। सांकेतिक अर्थ में कविता की भावना को सबसे अच्छी तरह अभिव्यक्ति किया जा सकता है। अतः, कालिदास की रचनाएं भारतीय काव्यशास्त्र के आधार पर ‘उत्तमकाव्यम्’ की श्रेणी में आती हैं।
उदाहरण के लिए: मेघदूतम्। यह कालिदास की एक सुन्दर रचना है। इसमें दिए गए विवरण इतने सजीव हैं कि कवि जो संदेश देना चाहता है उसकी कल्पना भी की जा सकती है।
(v) उनकी रचनाओं में संस्कृत और प्राकृत भाषा का प्रयोग है: उनकी रचनाओं की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि उच्च जाति के पात्र संस्कृत भाषा में बोलते हैं, जबकि निम्न जाति और महिलाओं के पात्र प्राकृत भाषा में बात करते हैं।
(vi) कालिदास की रचनाएं उनके तीन गुणों के लिए जानी जाती हैं: सौंदर्य की भावना, सौंदर्य मूल्यों की प्रशंसा करने की क्षमता और परंपरागत संस्कृति के प्रतिबिंब।
उदाहरण के लिए: अभिज्ञानशाकुन्तलम्। यह एक ऐसा नाटक है जिसमें कालिदास ने महाभारत के एक प्रसंग को पुनः परिभाषित किया है। इसमें उन्होंने अर्ध-दिव्य मूल की कन्या शकुंतला और एक कुलीन मानव राजा दुष्यंत की प्रेम कहानी को शानदार ढंग से चित्रित किया गया है।
निष्कर्ष:
हालांकि, कालिदास के अतिरिक्त अन्य प्रसिद्ध नाटककार भी थे जिन्हें इस काल में काफी ख्याति मिली थी। उदाहरण के लिए: शूद्रक (मृच्छकटिकम् के रचयिता) और विशाखदत्त (मुद्राराक्षस के रचयिता)।
लेकिन अन्य बातों के बावजूद गुप्त काल को कालिदास की रचनाओं से विशेष प्रसिद्धि मिली। इसी वजह से कालिदास को ‘कविकुलगुरु’ यानी ‘कवियों के बीच शानदार’ कहा जाता है।