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प्रश्न: 1765 से 1833 तक ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों के विकास का पता लगाइए।

Que. Trace the evolution of the East India Company’s relations with the British Raj from 1765 to 1833.

दृष्टिकोण:

(i) 18वीं शताब्दी के मध्य में ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) द्वारा परिकल्पित नियंत्रण की प्रकृति और इसके उद्देश्यों पर एक परिचय लिखिए।

(ii) इस बात पर प्रकाश डालिए कि ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश सरकार के संबंधों की प्रकृति में परिवर्तन किस प्रकार हुआ।

(iii) इन परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिए।

परिचय:

वर्ष 1765-1772 की द्वैध शासन की अवधि के दौरान, ब्रिटिश गवर्नर और ब्रिटिश अधिकारियों के पूर्ण नियंत्रण में आने वाले भारतीय अधिकारियों के पास ‘उत्तरदायित्व तो थे, किंतु कोई शक्ति नहीं थी’ जबकि कंपनी के अधिकारियों के पास ‘शक्ति थी, किंतु कोई उत्तरदायित्व नहीं था’

इससे राज्य के शोषण और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की समस्याएं उत्पन्न होने लगी। परिणामस्वरूप ब्रिटिश समाज के अन्य वर्गों, विशेष रूप से राजनेताओं एवं व्यापारियों को ईर्ष्या होने लगी, क्योंकि ये भारत में उत्पन्न होने वाले बड़े लाभ में हिस्सेदार बनना चाहते थे।

इसलिए ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) और इसके अधिकार तथा ब्रिटेन में सरकार के बीच संबंधों की प्रकृति का प्रश्न बाद में एक के बाद एक अधिनियमों और विनियमों के माध्यम से सुलझाया गया, जैसे:

A. विनियमन अधिनियम (रेगुलेटिंग एक्ट), 1773:

1. इसने पहली बार कंपनी के राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों को मान्यता दी।

2. इसने कंपनी के राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों पर रिपोर्ट करने के लिए कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (कंपनी के शासी निकाय) को अनिवार्य बना दिया। इस प्रकार इसने भारत में कंपनी पर ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण को मजबूत किया।

3. बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर-जनरल बनाया गया और मद्रास और बॉम्बे के गवर्नर को उसके अधीन कर दिया गया।

3. इसने कंपनी के कर्मचारियों को किसी भी निजी व्यापार में शामिल होने या मूल निवासियों से उपहार या रिश्वत लेने से प्रतिबंधित कर दिया।

B. पिट्स इंडिया अधिनियम, 1784:

1. इसने कंपनी के वाणिज्यिक और राजनीतिक कार्यों को पृथक कर दिया और पहली बार भारत में कंपनी के क्षेत्रों को ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्र के रूप में पहचाना गया।

2. इसने कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि) को वाणिज्यिक मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति दी लेकिन राजनीतिक मामलों के प्रबंधन के लिए बोर्ड ऑफ कंट्रोल (ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि) नामक एक नए निकाय का गठन किया। इस प्रकार, इसने दोहरे नियंत्रण की एक प्रणाली स्थापित की।

3. इसने बोर्ड ऑफ कंट्रोल को भारत में नागरिक और सैन्य शासन के सभी कार्यों अथवा ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्रों के राजस्व की निगरानी और निर्देशन करने का अधिकार दिया।

C. चार्टर अधिनियम, 1793:

1. इसका उद्देश्य 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को दिए गए चार्टर की समीक्षा करना था।

2. इसने ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार एकाधिकार को अगले 20 वर्षों तक जारी रखा। हालांकि, कंपनी को भारतीय राजस्व से ब्रिटिश सरकार को सालाना 5 लाख पाउंड (इसके आवश्यक खर्चों का भुगतान करने के बाद) का भुगतान करने के लिए कहा गया।

3. इसने कंपनी के राजस्व प्रशासन और न्यायिक कार्यों को अलग कर दिया और इस कारण माल अदालतों (राजस्व न्यायालय) बंद हो गए।

4. कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को बिना अनुमति भारत छोड़ने से रोक दिया गया।

5. यह निर्धारित किया गया था कि बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्यों और इसके कर्मचारियों को भारतीय राजस्व से भुगतान किया जाएगा। यह व्यवस्था वर्ष 1919 तक जारी रही और यह धन की निकासी के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारणों में से एक थी।

D. चार्टर अधिनियम, 1813: 

1. कंपनी के शासन को 20 वर्षों के लिए आगे बढ़ा दिया गया। किंतु उनका व्यापार एकाधिकार समाप्त कर दिया गया, हालांकि चाय, अफीम और चीन के साथ व्यापार पर अभी भी उनका एकाधिकार बना रहा।

2. इस अधिनियम के द्वारा भारत के प्रशासन में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं आया।

3. नेपोलियन द्वारा लागू की गई महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System) के परिणामस्वरूप ब्रिटेन का यूरोपीय देशों के साथ व्यापार बाधित हो गया था। परिणामस्वरूप ब्रिटिश कंपनियां एवं व्यापारी यूरोप से दूर अन्य देशों में व्यापार करने हेतु विवश हुए। अतः वे भारतीय व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार को समाप्त करना चाहते थे। फलतः इस चार्टर एक्ट द्वारा भारत के साथ कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।

4. यद्यपि, यह अधिनियम ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत के साथ व्यापार के एकाधिकार को समाप्त करने के कारण महत्वपूर्ण था, तथापि कंपनी का चीन के साथ व्यापार और चाय के व्यापार पर एकाधिकार बना रहा।

5. इसमें यह उपबंध किया गया था कि भारतीयों की शिक्षा के लिए कंपनी द्वारा प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये का व्यय किया जाएगा। हालांकि, इस प्रावधान को लागू नहीं किया गया।

6. इसके द्वारा स्थानीय निकायों को कर लगाने और उनके भुगतान न करने पर दंड देने का अधिकार दिया गया। हालांकि, यह कार्य सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन था।

E. चार्टर अधिनियम, 1833:

1. यह अधिनियम भारत के प्रशासन के केंद्रीकरण की दिशा में अंतिम कदम था।

2. इसने चाय और चीन के साथ व्यापार पर एकाधिकार सहित ईस्ट इंडिया कंपनी की सभी व्यावसायिक गतिविधियों को समाप्त कर दिया। 

3. भारत के गवर्नर-जनरल का पद सृजित किया गया और उन्हें संपूर्ण ब्रिटिश भारत पर विधायी अधिकार दिया गया। सभी राजस्व उसके प्राधिकार के तहत जुटाए जाते थे और व्यय पर भी उसका पूरा नियंत्रण था। अब, कंपनी के सभी नागरिक और सैन्य मामलों के अधीक्षण, नियंत्रण और निर्देशन का अधिकार उसके पास था।

निष्कर्ष:

इस प्रकार, संसद के विभिन्न अधिनियमों ने कंपनी और उसके भारतीय प्रशासन को पूरी तरह से ब्रिटिश सरकार के अधीन कर दिया। इसने अंग्रेजों को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रशासन की एक नई प्रणाली विकसित करने की अनुमति दी।

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