प्रश्न: द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् एशिया और अफ्रीका के देशों में विऔपनिवेशीकरण हेतु उत्तरदायी कारक क्या थे?
Que. What were the factors responsible for the decolonisation of the countries in Asia and Africa after the end of World War II?
दृष्टिकोण: (i) द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात विऔपनिवेशीकरण के संदर्भ में संक्षिप्त भूमिका प्रस्तुत कीजिए। (ii) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एशिया और अफ्रीका में स्वतंत्र राष्ट्रों के उदय के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
औपनिवेशिक या साम्राज्यवादी शक्ति से आश्रित देशों (उपनिवेशों) के स्वतंत्र होने की प्रक्रिया को ‘विऔपनिवेशीकरण’ कहा जाता है। ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ (1939-1945) के बाद की अवधि में एशिया और अफ्रीका के अधिकांश देशों का स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय हुआ। यद्यपि औपनिवेशिक शक्तियां उपनिवेशों से अपना आधिपत्य छोड़ने हेतु तैयार नहीं थीं, लेकिन फिर भी एशिया और अफ्रीका के देशों के विऔपनिवेशीकरण के लिए कई कारक कार्य कर रहे थे, जो नीचे दिए गए हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एशिया और अफ्रीका में स्वतंत्र राष्ट्रों के उदय के लिए उत्तरदायी कारक:
(i) राष्ट्रवाद का उदयः राष्ट्रवाद के उदय और लोकप्रिय जन समर्थन के कारण विभिन्न उपनिवेशों में राष्ट्रवादी आंदोलनों को बल मिला। इसने विऔपनिवेशीकरण प्रक्रिया को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए: भारत में महात्मा गांधी और घाना में क्वामे न्कुमा के नेतृत्व में हुए आंदोलनों ने वहीं के लोगों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संगठित किया।
(ii) साम्राज्यवाद का कमजोर होना: द्वितीय विश्व युद्ध के कारण अनेक साम्राज्यवादी देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इसके साथ ही, साम्राज्यवादी देशों के भीतर उपनिवेशवाद विरोधी शक्तियां मजबूत हो गई थीं।
(iii) लोकतांत्रिक आदर्शों का प्रसारः मित्र राष्ट्र, स्वतंत्रता और लोकतंत्र जैसे मुख्य उद्देश्यों के लिए ही फासीवादी देशों, जैसे कि- जर्मनी, इटली और जापान के विरुद्ध लड़ रहे थे। इन उद्देश्यों की प्राप्ति की भावना और विचार केवल यूरोप तक ही सीमित नहीं रह सकते थे इसलिए उनका प्रसार एशिया और अफ्रीका के देशों तक हुआ।
(iv) प्रतिद्वंद्वी ब्लॉकों से समर्थनः नव स्वतंत्र देशों में प्रभुत्व प्राप्त करने हेतु अमेरिका और सोवियत संघ उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों को समर्थन देने के लिए तत्पर थे। उदाहरण के लिए: कोरियाई प्रायद्वीप और भारत-चीन में उनकी भूमिका।
(v) समाजवाद और साम्यवाद का सुदृढ़ीकरणः समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा औपनिवेशिक देशों के साथ-साथ विश्व भर में शक्तिशाली हो चुकी थी। इसने भी उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलनों का समर्थन किया। उदाहरण के लिए: अल्जीरिया से फ्रांसीसियों की वापसी।
(vi) अंतर्राष्ट्रीय मतः संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उपनिवेशों की स्वतंत्रता का विचार लोकप्रियता हासिल करने लगा था। उदाहरण के लिए: संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने सभी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की पुष्टि की और विऔपनिवेशीकरण की प्रक्रिया की देखरेख के लिए एक न्यास परिषद (ट्रस्टीशिप काउंसिल) की स्थापना की।
(vii) उपनिवेशों के बीच एकताः उपनिवेशों के बीच एकता ने एशिया और अफ्रीका के देशों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए: स्वतंत्र भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख उद्देश्य अफ्रीकी देशों में स्वतंत्रता प्राप्ति के ध्येय का समर्थन करना था।
निष्कर्ष:
इन कारकों ने अन्य कारकों के साथ मिलकर एक ऐसे वैश्विक परिवेश का निर्माण किया जो विऔपनिवेशीकरण के लिए अनुकूल था। इसके परिणामस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के दशकों में कई एशियाई और अफ्रीकी देशों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।