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प्रश्न: “विदेशी लेखकों के विवरणों का उपयोग करते समय इतिहासकार के लिए किंवदन्तियों एवं प्रत्यक्ष अवलोकन पर आधारित तथ्यों में भेद करना अति आवश्यक है।” सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

“While using the accounts of foreign writers, historians must distinguish between statements based on hearsay and those grounded in perceptive observations.” Elaborate with examples. [UPSC CSE 2014]

उत्तर: इतिहासकारों के लिए विदेशी लेखकों के विवरणों का उपयोग करते समय यह अत्यंत आवश्यक है कि वे किंवदंतियों और प्रत्यक्ष अवलोकन पर आधारित तथ्यों में भेद करें। प्राचीन भारतीय समाज और संस्कृति पर विदेशी दृष्टिकोण से लिखे गए विवरणों में कई बार अतिशयोक्ति या भ्रांतियाँ पाई जाती हैं।

(i) विदेशी लेखकों जैसे- मैगस्थनीज, हेरोडोटस और अलबरूनी ने भारतीय समाज का वर्णन किया, लेकिन उनके अनुभव और दृष्टिकोण अपने सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भों से प्रभावित थे। मैगस्थनीज ने अपनी कृति “इंडिका” में भारत को आदर्श समाज के रूप में चित्रित किया।

(ii) हालांकि, मैगस्थनीज के विवरणों में कुछ अतिरंजना और कल्पनाएँ भी थीं। उन्होंने भारतीय समाज को अत्यधिक संपन्न और शांतिपूर्ण बताया, जबकि भारत की वास्तविक स्थिति में युद्ध, संघर्ष और असमानताएँ भी थीं। 

(iii) इसके विपरीत, हेरोडोटस ने भारतीय समाज को विदेशी दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने भारतीयों को अत्यधिक धार्मिक और रहस्यमय बताया, लेकिन यह एक पक्षीय दृष्टिकोण था। भारतीय समाज की विविधता और जटिलता को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया।

(iv) इन लेखकों के विवरणों में मिथकों और वास्तविकताओं के मिश्रण की समस्या थी। उदाहरण के लिए, उन्होंने भारतीय समाज को या तो अत्यधिक उन्नत या अत्यधिक अव्यवस्थित दिखाया, लेकिन दोनों ही चित्र वास्तविकता से दूर थे।

(v) इतिहासकारों को इन विवरणों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना चाहिए। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वे तथ्यों और किंवदंतियों के बीच भेद करें। उदाहरण के लिए, कुछ विदेशी लेखकों ने भारतीय धर्म और संस्कृति को अतिशयोक्ति के साथ प्रस्तुत किया, जिससे एक विकृत चित्र बनता है।

(vi) इसके अलावा, इन विवरणों का आलोचनात्मक अध्ययन यह सुनिश्चित करता है कि हम सत्य और भ्रांति के बीच अंतर कर सकें। इतिहासकारों को यह समझना चाहिए कि हर विदेशी विवरण सटीक नहीं हो सकता।

(vii) विदेशी लेखकों के वर्णन में सांस्कृतिक अंतर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय समाज के बारे में लिखते समय, वे अपने अनुभव और धारणाओं के आधार पर लिखते थे, जो अक्सर वास्तविकता से भिन्न होते थे।

(viii) इतिहासकारों को यह समझना चाहिए कि प्रत्येक विवरण सत्य नहीं हो सकता। उदाहरण के तौर पर, पुर्तगाली और ब्रिटिश लेखकों ने भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को अपनी औपनिवेशिक मानसिकता से देखा।

निष्कर्षतः, विदेशी लेखकों के विवरणों का उपयोग करते समय इतिहासकारों को यह महत्वपूर्ण भेद करना चाहिए कि क्या तथ्य है और क्या मिथक। यह उन्हें अपने शोध में अधिक विश्वसनीयता और सटीकता बनाए रखने में मदद करेगा।

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