प्रश्न: बौद्ध आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के कारण हाथियों को बौद्ध मूर्तिकल में भी व्यापक रूप से दर्शाया गया है। चर्चा कीजिए।
Que. With the elephant being a vital part of the Buddhist faith, it was widely represented in its sculptures as well. Discuss.
दृष्टिकोण: (i) बौद्ध धर्म के बारे में संक्षिप्त वर्णन करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए। (ii) चर्चा कीजिए कि बौद्ध आस्था और मूर्तिकला में हाथियों को व्यापक रूप से क्यों और कैसे दर्शाया गया है। (iii) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय:
बौद्ध धर्म एक अनीश्वरवादी धर्म है अर्थात् यह ईश्वर को संसार का सृजनकर्ता नहीं मानता है। इसे एक दर्शन एवं नैतिक संप्रदाय भी माना जाता है, जिसका उद्भव भारत में 6वीं से 5वीं शताब्दी ई.पू. के मध्य हुआ था। इसकी स्थापना सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) द्वारा की गई थी।
हाथी अपनी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और धैर्य के लिए प्रसिद्ध है, इसलिए हाथी को बौद्ध आस्था का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है जैसा निम्नलिखित द्वारा स्पष्ट किया गया है:
(i) पूर्वजन्म में बुद्ध का एक हाथी के रूप में जन्मः ऐसी मान्यता है कि मानव रूप में जन्म लेने से पूर्व, बुद्ध का जन्म एक हाथी के रूप में हुआ था। इसलिए बौद्ध धर्म में हाथियों को पवित्र माना जाता है।
(ii) बुद्ध का श्वेत हाथी स्वरूपः रानी माया ने गर्भावस्था और सिद्धार्थ के जन्म से पूर्व अपने स्वप्न में एक श्वेत हाथी देखा था। उनका मानना था कि वही श्वेत हाथी उनके गर्भ में आया और सिद्धार्थ का जन्म हुआ।
(iii) कमल सूत्रः यह बौद्ध धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है। इसमें हाथी का वर्णन “ध्यानशील” और “पूर्णतः शांत” स्वभाव वाले जीव के रूप में किया गया है। इसमें बौद्ध धर्म के मूल्यों को हाथी की शारीरिक विशेषताओं से निम्नानुसार संबद्ध किया गया है: (a) धम्म को इसके उदर से संबद्ध किया गया है। (b) उसके दंत “समानता” को दर्शाते हैं। (c) उसका बड़ा सिर “सजग विचारशीलता” को दर्शाता है। (d) उसकी पूंछ “एकाकीपन” को दर्शाती है।
(iv) ध्यान को प्रदर्शित करता है: चूंकि हाथी अत्यधिक बुद्धिमान होते हैं, इसलिए अनेक बौद्ध संतों का मानना है कि एक प्रतीक के रूप में हाथी “एक स्पष्ट मानसिकता” को दर्शाता है, जिसे ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
बौद्ध आस्था में हाथियों को दिया गया यह महत्व बौद्ध मूर्तिकला में उनकी प्रमुखता को स्पष्ट करता है। इसे निम्नलिखित द्वारा स्पष्ट किया गया है:
(i) हाथियों पर आसीन बोधिसत्वः बौद्ध मूर्तिकला में, बोधिसत्वों को प्रायः हाथी पर बैठे हुए दर्शाया जाता है। यह निरूपित करता है कि ‘ज्ञान से शक्ति प्राप्त होती है’ (Knowledge Brings Power) होती है।
(ii) सिंह शीर्ष के भाग के रूप में: सारनाथ में पाए गए एकाश्म सिंह शीर्ष में एक गोलाकार वेदी पर एक बैल, एक घोड़े और एक शेर के साथ एक हाथी को चित्रित किया गया है। इन पशुओं को चार धर्मचक्रों या विधि के पहियों के मध्य बदलते हुए क्रम में दर्शाया गया है।
(iii) धौली में शैलकृत हाथी की प्रतिमाः यह ओडिशा की प्राचीनतम बौद्ध प्रतिमा है, जिसका निर्माण अशोक द्वारा करवाया गया था। यह प्रतिमा पहाड़ी चट्टानों से निकलते हुए “हाथी के अग्र भाग” की तरह प्रतीत होती है।
(iv) अमरावती में नलगिरि को शांत करते हुए प्रतिमाः यह राजगृह में बुद्ध पर छोड़े गए नलगिरि नामक एक पागल हाथी को उनके द्वारा वश में करने या शांत करने के दृश्य का एक उत्कृष्ट चित्रण है।
(v) स्तंभों के शीर्ष पर हाथी: कार्ले की गुफा में दंपत्ति और मिथुन की आकृतियों को स्तंभों के शीर्ष पर भव्य हाथियों की सवारी करते जोड़ों के रूप में दर्शाया गया है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, विभिन्न धर्मग्रंथों में बुद्ध को एक हाथी अर्थात् शांत, स्थिर और सजग प्रतिमान के रूप में वर्णित किया गया है। हालांकि आरंभिक बौद्ध कलाओं में बुद्ध को विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया जाता था। बुद्ध को मानव रूप में चित्रित करना महायान बौद्ध संप्रदाय द्वारा आरंभ किया गया था।